वाराणसी
प्रदेश में नयी आबकारी नीति से टूटी छोटे शराब कारोबारियों की कमर
प्रतिभूति की पिछली रकम अब तक वापस नहीं, एक बार फिर बड़े सिंडिकेट का वर्चस्व कायम
वाराणसी (जयदेश)। उत्तर प्रदेश में ई- लॉटरी पद्धति से अंग्रेजी शराब, बियर और देशी शराब की दुकानों के आवंटन के लिए वर्ष 2025 में जो आबकारी नीति बनायी गयी थी उस पर एक बार फिर बड़े सिंडिकेट का वर्चस्व कायम हो गया है। होलसेल के साथ ज्यादातर दुकानें बड़े सिंडिकेट के कब्जे में चली गयी है जबकि छोटे शराब कारोबारियों की कमर टूट गयी है।
ई-लॉटरी में जितने भी लोगों ने टेंडर डाला था उसमें ज्यादातर लोगों का पैसा डूब गया और सरकारी खजाने में चला गया। प्रदेश में पहले आबकारी की दुकानों की नीलामी होती थी जिसमें सभी जिलों के जिलाधिकारी और आबकारी विभाग से जुड़े बड़े अधिकारी मौजूद रहते थे। उनकी मौजूदगी में बोली, बोली जाती थी। जो ठेकेदार अधिकतम बोली बोलता था दुकानें उसके नाम से आवंटित कर दी जाती थी।
जब राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री बने तो उनके शासन में सूर्य प्रताप शाही प्रदेश के आबकारी मंत्री थे। उस समय शराब की दुकानों को लाटरी पद्धति से आवंटित किया गया जिसमें पूरी पारदर्शिता और ईमानदारी बरती गई थी। इसके तहत तमाम छोटे कारोबारियों ने भी शराब की दुकानें प्राप्त कर ली थी। बसपा के शासन में फिर लॉटरी पद्धति से ही दुकानों का आवंटन हुआ।
उस समय पोन्टी चड्ढा एंड कंपनी का पूरी तरह वर्चस्व था। होलसेल की सप्लाई के लिए एक रुपये में बनायी गयी कंपनी को मायावती के शासन में 200 करोड़ का काम सौंप दिया गया था। उसके बाद प्रदेश में जो भी सरकारें आयीं उसमें आबकारी नीति के तहत 5 से 10% तक आबकारी शुल्क बढ़ाकर पहले की दुकानों को ही नवीनीकृत कर दिया जाता था। उसी दौरान प्रमुख शराब कारोबारी पोन्टी चड्ढा की हत्या हो गई और उसके पुत्र मोंटी चड्ढा ने सारा कारोबार संभाल लिया।
पोन्टी चड्ढा अपने बेटे मोंटी चड्ढा के साथ
पुनः जब भाजपा की सरकार सत्ता में आयी तब कुछ प्रतिशत बढ़ाकर दुकानों का नवीनीकरण कर दिया जाता था। इसके चलते लॉटरी पद्धति से बड़े सिंडिकेट और नामी शराब कारोबारियों का सिंडिकेट टूट गया। चड्ढा एंड कंपनी बसपा और सपा की सरकार आने पर येन-केन प्रकारेण 20 से 30% फुटकर दुकानें हथियाने में सफल हो गई।
भाजपा सरकार द्वारा की गई लॉटरी से चड्ढा एंड कंपनी का वर्चस्व टूट गया और उसके पास सीमित संख्या में ही फुटकर दुकानें रह पायी। बाकी दुकानें अन्य कारोबारियों को मिल गयी। इस तरह चड्ढा एंड कंपनी का एकाधिकार समाप्त हो गया। उसके बाद से यह कंपनी लगातार इस प्रयास में लगी थी कि किसी तरह सरकार में पैठ बनाकर आबकारी नीति में परिवर्तन कराया जाए और लॉटरी पद्धति से दुकानें आवंटित करा दी जाये।
इस कार्य में जो भी अधिकारी शामिल रहे हैं उन्होंने सत्ता और मुख्यमंत्री तक को दिग्भ्रमित कर नई पॉलिसी बनवा दी जिसकी वजह से ई-टेंडर डालने का फार्म और खर्च इतना बढ़ गया कि छोटे-मोटे ठेकेदार समाप्त हो गये। चड्ढा एंड कंपनी जो चाहती थी उसके मन मुताबिक वैसा ही हुआ।
इस बार यदि सही आकलन किया जाए तो उत्तर प्रदेश में चड्ढा एंड कंपनी काफी संख्या में थोक के साथ ही फुटकर दुकानें भी हथियाने में सफल हो गई है। गाजीपुर की तो बात ही अलग हो गयी है। वहां जिन्होंने 25 से 50 फॉर्म भरा था उनको एक भी दुकान नहीं मिली। उसके विपरीत जिन्होंने कम फॉर्म भरे थे उनके अपने लोगों के नाम से कई दुकानें आवंटित हो गई। 50 से 60% दुकानें ऐसे लोगों को मिल गयी जो वहां के पूर्व सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री के काफी करीबी माने जाते हैं। इसे लेकर आम लोगों में भारी आक्रोश है। लोगों के दिमाग में सिर्फ यही सवाल उठ रहा है कि कहीं ना कहीं इसमें खेला हुआ है।