धर्म-कर्म
हाथी पर सवार होकर आएंगी माँ शक्ति स्वरूपा एवं जाएंगी पैदल
रिपोर्ट – प्रदीप कुमार
वाराणसी: हिंदू पञ्चाङ्ग के अनुसार प्रत्येक वर्ष आश्विन मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक के महापर्व को हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्र के नाम से जाना जाता है।
वस्तुतः जो कि इस वर्ष 15 अक्टूबर रविवार से लेकर 24 अक्टूबर मगंलवार तक रहेगा।
वस्तुतः 24 अक्टूबर मगंलवार को शारदीय नवरात्रि के दसवें दिन दशहरा का महापर्व मनाया जायेगा।
वस्तुतः नवरात्रि के दिनों का विशेष महत्व होता है।
9 दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार में देवी के अलग-अलग नौ स्वरूपों की अराधना की जाती है।
रविवार के दिन नवरात्रि का पहला दिन होने के कारण इस दिन मां दुर्गा हाथी की सवारी करते हुए पृथ्वी पर आएंगी. ।
देवी भागवत पुराण के अनुसार जब माता दुर्गा नवरात्रि पर हाथी की सवारी करते हुए आती हैं ।तब तो उस वर्ष में वर्षा होती है, एवं मंगल कार्य विश्व भर में होते रहते हैं।
वस्तुतः इस वर्ष भगवती की आगम हाथी पर शुभ और गमन पैदल होने के कारण अमंगल सूचक है।
वस्तुतः नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है।
साथ ही कई भक्त इन दिनों उपवास रखते हैं और कन्या पूजन के पश्चात उपवास खोलते है।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त :- सुबह 06:16: से 12:23: बजे के बीच है।
इसके अलावा दोपहर में 11:38: बजे से 12:23 के बीच अभिजीत मुहूर्त भी है जिसके बीच आप कलश स्थापना कर सकते हैं।
वस्तुतः आश्विन की प्रतिपदा तिथि 15 अक्टूबर को समस्त है।
उक्त बातें आयुष्मान ज्योतिष परामर्श सेवा केन्द्र के संस्थापक साहित्याचार्य ज्योतिर्विद आचार्य चन्दन तिवारी ने बताया कि धर्मग्रंथ एवं देवी भागवत पुराण के अनुसार शारदीय नवरात्रि माता दुर्गा की आराधना का श्रेष्ठ समय होता है।
नवरात्र के इन पावन दिनों में हर दिन मां के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है, जो अपने भक्तों को खुशी, शक्ति और ज्ञान प्रदान करती है।
नवरात्रि का हर दिन देवी के विशिष्ठ रूप को समर्पित होता है और हर देवी स्वरुप की कृपा से अलग-अलग तरह के मनोरथ पूर्ण होते हैं।
नवरात्रि का पर्व शक्ति की उपासना का महा-पर्व है। वस्तुतः जो कि शारदीय
नवरात्रि में पंडित जी को बुला कर मनवांछित फल की प्राप्ति के लिए दुर्गासप्तशती का पाठ साधारण,सम्पूर्ण, या, सम्पुटित पाठ,एवं बीज मन्त्र का जप अवश्य कराये।
- नवरात्रि दिन 1 (प्रतिपदा), 15 अक्टूबर रविवार – घटस्थापना (कलश स्थापना), मां शैलपुत्री की पूजा।
- नवरात्रि दिन 2 (द्वितीया), 16 अक्टूबर सोमवार – मां ब्रह्मचारिणी की पूजा ।
- नवरात्रि दिन 3 (तृतीया), 17 अक्टूबर मगंलवार – मां चंद्रघंटा की पूजा।
- नवरात्रि दिन 4 (चतुर्थी), 18 अक्टूबर बुधवार – मां कूष्मांडा की पूजा।
- नवरात्रि दिन 5 (पंचमी), 19 अक्टूबर गुरूवार – मां स्कंदमाता की पूजा।
- नवरात्रि दिन 6 (षष्टि), 20 अक्टूबर शुक्रवार – मां कात्यायनी की पूजा, तथा विल्वाभिमंत्रणम्।
- नवरात्रि दिन 7 (सप्तमी), 21 अक्टूबर शनिवार –मां कालरात्रि की पूजा पत्रिका-प्रवेशनम्। निशिथकाल में माहा निशा पुजा, तथा बलिदान आदि।
- नवरात्रि दिन 8 (अष्ठमी), 22 अक्टूबर रविवार – मां महागौरी की पूजा,अष्टमी व्रत, पूजा।
- नवरात्रि दिन 9(नवमी), 23 अक्टूबर सोमवार – माँ सिद्धिदात्री की आयुध पूजा, नवमी हवन, कन्या एवं भैरव पूजन,।
10 शारदीय नवरात्रि दिन 10 (दशमी) 24 अक्टूबर मगंलवार को — जयन्ती ग्रहण:, शमी पूजन, अपराजिता पूजन,शस्त्र पूजन, नवरात्रि पारण आदि कार्य संपन्न होगा।
घट विसर्जन माँ दुर्गा की विदाई एवं अस्थाई रूप से स्थापित मूर्ति विसर्जन होगा।
इसी दिन दशहरा का महापर्व यानी विजयदशमी मनाया जाएगा।
शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे।
गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥ ( देवीपुराण)
रविवार और सोमवार को भगवती हाथी पर आती हैं,
शनि और मंगल वार को घोड़े पर,
बृहस्पति और शुक्रवार को डोला पर,
बुधवार को नाव पर आती हैं।
गजेश जलदा देवी क्षत्रभंग तुरंगमे।
नौकायां कार्यसिद्धिस्यात् दोलायों मरणधु्रवम्॥
अर्थात् दुर्गा हाथी पर आने से अच्छी वर्षा होती है,
घोड़े पर आने से राजाओं में युद्ध होता है।
नाव पर आने से सब कार्यों में सिद्ध मिलती है और
यदि डोले पर आती है तो उस वर्ष में अनेक कारणों से बहुत लोगों की मृत्यु होती है।
गमन (जाने)विचार:-
शशि सूर्य दिने यदि सा विजया महिषागमने रुज शोककरा,
शनि भौमदिने यदि सा विजया चरणायुध यानि करी विकला।
बुधशुक्र दिने यदि सा विजया गजवाहन गा शुभ वृष्टिकरा,
सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहन गा शुभ सौख्य करा॥
भगवती रविवार और सोमवार को महिषा (भैंसा)की सवारी से जाती है जिससे देश में रोग और शोक की वृद्धि होती है।
शनि और मंगल को पैदल जाती हैं जिससे विकलता की वृद्धि होती है।
बुध और शुक्र दिन में भगवती हाथी पर जाती हैं। इससे वृष्टि वृद्धि होती है।
बृहस्पति वार को भगवती मनुष्य की सवारी से जाती हैं। जो सुख और सौख्य की वृद्धि करती है।
इस प्रकार भगवती का आना जाना शुभ और अशुभ फल सूचक हैं।
इस फल का प्रभाव यजमान पर ही नहीं, पूरे राष्ट्र पर पड़ता हैं।
