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गाजीपुर

नोनहरा लाठीचार्ज कांड : हाईकोर्ट अधिवक्ता दीपक पांडेय का ऐलान – नि:शुल्क लड़ेंगे केस

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यह हत्या नहीं, संविधान पर है हमला : दीपक पांडेय

गाजीपुर। नोनहरा थाना परिसर में हुए पुलिस लाठीचार्ज कांड ने पूरे जिले की राजनीति को हिला कर रख दिया है। पुलिस लाठीचार्ज का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। लाठीचार्ज के बाद भाजपा कार्यकर्ता सीताराम उपाध्याय की मौत के बाद अब यह मामला अदालत की दहलीज तक पहुंच चुका है। इस बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता दीपक कुमार पांडेय ने बड़ा ऐलान करते हुए कहा है कि वे इस केस को पूरी तरह निशुल्क लड़ेंगे।

अधिवक्ता श्री पांडेय ने मीडिया से बातचीत में कहा कि यह केवल एक व्यक्ति की मौत नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र की जड़ों पर सीधा हमला है। संविधान का अनुच्छेद 21 हर नागरिक को जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार देता है। अगर पुलिस ही जनता की जान लेने लगे, तो यह स्पष्ट रूप से संविधान का हनन है।

उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर क्यों अभी तक दोषी पुलिसकर्मियों पर आईपीसी की धारा 302 (हत्या) (BNS 103) के तहत मुकदमा दर्ज नहीं हुआ? सिर्फ निलंबन और लाइनहाजिरी किसी भी तरह का न्याय नहीं है। जब तक दोषी पुलिसकर्मियों की गिरफ्तारी नहीं होगी और उन पर हत्या का मुकदमा नहीं चलेगा, तब तक यह केस अधूरा रहेगा। अधिवक्ता दीपक पांडेय का कहना है कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) अब BNSS (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता) और भारतीय दंड संहिता (IPC) अब BNS (भारतीय न्याय संहिता) दोनों में ऐसे मामलों के लिए स्पष्ट प्रावधान हैं। बिना लिखित आदेश और उचित चेतावनी के लाठीचार्ज अवैध है।

अगर किसी की मौत पुलिस बल प्रयोग से होती है, तो संबंधित अधिकारी सीधे आपराधिक जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले बताते हैं कि पुलिस को न्यूनतम बल प्रयोग का अधिकार है, न कि अत्यधिक बल प्रयोग का।

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अब पूरा गाजीपुर और पूर्वांचल इस सवाल का जवाब चाहता है कि क्या मजिस्ट्रियल जांच महज लीपापोती बनकर रह जाएगी? क्या दोषी पुलिसकर्मी बचा लिए जाएंगे?

और सबसे बड़ा सवाल – क्या सीताराम उपाध्याय के परिवार को इंसाफ मिलेगा या यह केस भी इतिहास के पन्नों में गुम हो जाएगा? हाईकोर्ट के अधिवक्ता दीपक कुमार पांडेय का यह कदम न केवल कानूनी मोर्चे पर नई उम्मीद जगाता है, बल्कि प्रशासन और सरकार के लिए भी सीधी चुनौती है। लाठीचार्ज कांड अब सिर्फ गाजीपुर का मुद्दा नहीं रहा, बल्कि यह लोकतांत्रिक कानून बनाम राजतंत्र की तानाशाही लड़ाई का प्रतीक बन चुका है।

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