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Allahabad High Court : पत्नी की परिभाषा दस्तावेजों से बड़ी

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प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया है, जिसमें कहा गया है कि पति-पत्नी के बीच रिश्तों को प्रमाणित करने के लिए कागजी दस्तावेज जरूरी नहीं हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि लंबे समय तक पति-पत्नी की तरह साथ रहने वाले पुरुष और महिला को भरण-पोषण का हक दिया जाएगा, भले ही विवाह का औपचारिक प्रमाण न हो। यह फैसला समाज में प्रचलित वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

भरण-पोषण में विवाह प्रमाण की अनिवार्यता पर हाईकोर्ट की सफाई

यह आदेश न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की अदालत ने दिया, जिसमें देवरिया निवासी याची की याचिका स्वीकार कर पारिवारिक न्यायालय के आदेश को रद्द किया गया। कोर्ट ने मामले को पुनः सुनवाई के लिए वापस भेजते हुए, याची को अंतरिम भरण-पोषण देने का निर्देश भी दिया है। इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि भरण-पोषण के लिए शादी का प्रमाण दिखाना अनिवार्य नहीं होगा, बल्कि वास्तविक जीवन में संबंधों की पहचान को महत्व दिया जाएगा।

विवादित मामला: देवरिया निवासी याची की याचिका

याची ने 2017 में पति के निधन के बाद देवरिया के एक कांस्टेबल से शादी होने का दावा किया। याची ने आरोप लगाया कि शादी के बाद देवर दहेज की मांग करने लगा और दूसरी शादी कर उन्हें घर से निकाल दिया। जबकि विपक्षी पक्ष ने शादी से इनकार किया। पारिवारिक न्यायालय ने शादी के प्रमाण न होने पर याची की भरण-पोषण की मांग खारिज कर दी थी। इसके खिलाफ याची ने हाईकोर्ट का रुख किया, जहां आधार कार्ड, बैंक रिकॉर्ड और गवाहों के माध्यम से दोनों के बीच पति-पत्नी समान संबंधों का सबूत पेश किया गया।

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कोर्ट की नसीहत: न्याय के लिए रिश्तों को नकारना सही नहीं

हाईकोर्ट ने पारिवारिक न्यायालय की तकनीकी गलतियों को स्पष्ट किया और कहा कि विवाह का प्रमाण न होने के कारण भरण-पोषण की याचिका खारिज करना उचित नहीं है। कोर्ट ने इस फैसले में सामाजिक और कानूनी दृष्टि से रिश्तों की व्यापकता को समझा और फैसला सुनाया कि पति-पत्नी जैसे संबंधों की मान्यता के लिए दस्तावेजों से बड़ा वास्तविकता का महत्व होता है।

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