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वाराणसी

सांसद वीरेंद्र सिंह ने संसद में उठाया बीएचयू के कार्यकारिणी परिषद का मुद्दा

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वाराणसी। चंदौली लोकसभा से समाजवादी पार्टी के सांसद वीरेंद्र सिंह ने शुक्रवार को संसद में बीएचयू (काशी हिंदू विश्वविद्यालय) में तीन साल से ईसी यानी कार्यकारिणी परिषद का गठन नहीं करने का मुद्दा उठाया है। उन्होंने कहा है कि एक व्यक्ति विश्वविद्यालय को संचालित कर रहा है। देश की अति महत्वपूर्ण संस्था बीएचयू के बेहतर संचालन के लिए एक्ट के अनुसार ईसी का गठन होता है, जो विश्वविद्यालय के संचालन एवं संबंधित विभागों में नियुक्ति, निष्कासन एवं गुणवत्ता युक्त निगरानी व पठन-पाठन का कार्य करती है। कर्मचारियों के हितों की भी निगरानी करती है।

उन्होंने आगे कहा कि, चिकित्सा विज्ञान संस्थान में भी नियुक्ति और मशीनों की खरीद पर भी निगरानी करती है, लेकिन तीन साल से ज्यादा बीतने को है, लेकिन सर्वाधिक प्रभावशाली कमेटी का गठन नहीं हो पाया है। जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी ‘ईसी’ का गठन करें ताकि पारदर्शी तरीके से विश्वविद्यालय का कार्य किया जा सके। पहले भी इस तरह के कई गलत निर्णय ईसी ने पलटे हैं। ईसी के पास असीमित शक्तियां होती हैं।

2021 में ईसी का कार्यकाल खत्म हो गया था, लेकिन उसके बाद कोई दूसरी ईसी गठित नहीं की जा सकी। साल 2020 की बात है जब, काशी हिंदू विश्वविद्यालय की सेलेक्शन कमेटी ने सर सुंदरलाल अस्पताल में पांच साल के लिए नया चिकित्सा अधीक्षक नियुक्त कर दिया था। प्रक्रिया पर सवाल खड़े हो गए तो विश्वविद्यालय की ईसी (कार्यकारिणी परिषद) को हस्तक्षेप करना पड़ा और नियुक्ति रद कर दी। तत्कालीन कुलपति के निर्णय को बदल दिया गया। इसी साल एक सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति को ईसी ने ठंडे बस्ते में डाल दिया, वह शिक्षक आज तक संस्थान में काम शुरू नहीं कर सके हैं।

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प्रकरण को लेकर कई आंदोलन हुए। चारों तरफ निंदा हुई लेकिन ईसी का गठन नहीं किया जा सका। आठ सदस्यीय कार्यकारिणी परिषद में दो नाम विश्वविद्यालय की तरफ से भेजे जाते हैं, जबकि छह नामों पर मुहर राष्ट्रपति की तरफ से लगती है। कार्यकाल तीन साल के लिए होता है। ईसी का गठन नहीं होने के कारण विश्वविद्यालय में शिक्षकों और छात्रों को तमाम दिक्कतें हुईं। शिक्षण, वित्तीय और नीतिगत फैसले में ईसी सदस्यों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन ईसी नहीं होने के कारण शिक्षकों और छात्रों को एनजीटी व हाई कोर्ट की शरण लेनी पड़ी।

इस कारण बीएचयू की विश्व स्तर पर किरकिरी हुई, क्योंकि बिना ईसी के निर्णय कुलपति लेते हैं। किसी गलत निर्णय के बाद लोग लोकतांत्रिक तरीके से विश्वविद्यालय की आंतरिक कार्यकारिणी परिषद में गुहार लगाते थे और उन्हें संतुष्टि भी मिलती रही है लेकिन तीन सालों से ऐसा नहीं होना सवाल खड़े करता है।

सांसद के सवाल खड़ा करने को लेकर काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. अरुण कुमार सिंह और पीआरओ राजेश कुमार सिंह से उनका पक्ष लेने का प्रयास हुआ तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।

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