गाजीपुर
सवनवां में ना जईबें ननदो, चाहे भईया आवें चाहे जांय हो

“सड़िया ला द बलम कलकतिया, जेम्मे झालर मोतिया ना।”
दुल्लहपुर (गाजीपुर)। सावन का महीना आते ही चर अचर में खुशी और शिव की उपासना का माहौल सर्वत्र दिखने लगता है। दिग्दिगंत भक्ति और आस्था में डूब जाता है। यहां तक कि ”सावन का महीना पवन करे सोर, जियरा रे झूमे ऐसे जैसे बनवां नाचे मोर” की सुंदर छवि के साथ बागों, अमराइयों, खेत-खलिहानों में हरियाली ही हरियाली दिखने से प्राकृतिक सुषमाओं के प्रति मन बर्बस खिंच जाता है। संगीत की अनेक विधाओं जैसे शास्त्रीय संगीत, फिल्म संगीत तथा लोक संगीत में रचे-बसे गीत सावन महीने का सुखद अहसास कराते हैं। उदाहरणार्थ, ‘सावन आया बादल छाए, बुलबुल चहके फूल खिले’ आदि।
आकाश से झरती रिमझिम पानी की बूंदों के बीच पेड़ों पर पड़े झूले और गूंजती कजरी गीत का कोई जवाब नहीं। वैसे तो सावन विवाहित जोड़ों के लिए मौज-मस्ती और इजहार-ए-खुशी का महीना है। एक दूजे के अभाव में सावन का मजा किरकिरा लगता है। तभी तो एक पत्नी अपने पति के परदेश चले जाने और सावन महीना के आने पर अपने मन की व्यथा कुछ प्रकार व्यक्त करती हुई कहती है – “सावन हमके ना मन भावे, रहि रहि याद सतावे ना।” पत्नी के मन की आवाज पति तक पहुंचते ही पति अपने तनख्वाह की परवाह किए बगैर अचानक घर आ जाता है। पत्नी देखते ही बाहों में लिपट जाती है और आश्चर्य भाव से देखने पर पति स्वयं यह कह उठता है – “सावन के झूलों ने मुझको बुलाया, मैं परदेशी घर वापस आया।”
एक तरफ जहां सावन के महीने में पत्नी अपने पति से अपनी गोरी-गोरी कलाइयों में हरी-हरी चूड़ियां पिन्हाने को कहती है, वहीं मनपसंद साड़ी के लिए बेहिचक कहने से भी बाज नहीं आती कि – “सड़िया ला द बलम कलकतिया, जेम्मे झालर मोतिया ना।”
मुंह बोली छैल-छबीली ननद का भौजाई प्रेम भी अपने आप में निराला होता है। सावन का महीना सोने में सोहागा होता है क्योंकि दोनों अपने मन की बात एक-दूसरे से खूब बांटती हैं। लोकगीतों में ननद-भौजाई के प्रेम प्रगाढ़ता को देखा जा सकता है। अलबेली नई नार नवेली के ससुराल में रहते हुए मायके वालों द्वारा सावन महीना में विदाई मांगे जाने पर मायके नहीं जाने की अपनी इच्छा भी स्वयं न कहकर ननद के द्वारा ही व्यक्त करवाती हुई कहती है – “वीरन भइया अइलैं अनवइया हो, सवनवां में ना जइबैं ननदी, चाहे भईया आवें चाहे जांय हो।”
इससे इतर बात खेती-किसानी की करें तो सावन की चहक और कजरी गीत की महक फिजा में मिठास घोल देती है। खेतों की तैयारी को हल खींचते बैलों की जोड़ी तथा उनके गले की बजती घुंघरूदार घंटियां, क्यारियों में भरा पानी, ऊपर से होती बारिश में खेतों में धान की रोपाई करती महिलाओं के कंठ से फूटती कजरी गीत तो सचमुच मन को आनंद से भर देती है।