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गाजीपुर

मोहर्रम में काले कपड़े पहनने का क्या है महत्व

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बहरियाबाद (गाजीपुर)। इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना मोहर्रम विशेष रूप से शिया मुसलमानों के लिए गम और याद का महीना माना जाता है। इस दौरान पैगंबर हजरत मुहम्मद के नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की कर्बला के मैदान में दी गई शहादत को याद किया जाता है। यह घटना इस्लाम के इतिहास की सबसे दर्दनाक और महत्वपूर्ण घटनाओं में शुमार की जाती है।

मोहर्रम के दौरान काले वस्त्र पहनना केवल एक परंपरा नहीं बल्कि इसके पीछे कई गहरे अर्थ और भावनाएं छुपी हैं। काला रंग शोक, दुख और संवेदना का पारंपरिक प्रतीक माना जाता है। काले कपड़े पहनकर मुसलमान कर्बला की त्रासदी में हुई क्षति और इमाम हुसैन के प्रति अपने गहरे दुख को व्यक्त करते हैं। यह उनके बलिदान और बहादुरी को श्रद्धांजलि देने का भी एक तरीका है, जिन्होंने सत्य और इंसाफ के लिए अपने पूरे परिवार सहित जान कुर्बान कर दी थी।

काले वस्त्र पहनना शिया समुदाय के बीच एकरूपता और एकजुटता की भावना को भी मजबूत करता है। हजारों लोग जब एक ही रंग के कपड़े पहनते हैं, तो यह दर्शाता है कि वे सभी एक ही ऐतिहासिक पीड़ा और दुख को साझा कर रहे हैं। कुछ विद्वान मानते हैं कि काले वस्त्र सांसारिक चकाचौंध से दूर रहकर वैराग्य, सादगी और भक्ति का भी प्रतीक हैं। इस दौरान लोग सादा जीवन जीते हैं, खुशियों से दूर रहते हैं और कई लोग उपवास भी रखते हैं।

मोहर्रम के महीने में काले कपड़े आमतौर पर 1 मोहर्रम से पहनना शुरू कर दिया जाता है और यह सिलसिला अशूरा (10 मोहर्रम) तक जारी रहता है। कई लोग पूरे महीने और कुछ लोग सफर महीने के अंत तक काले कपड़े पहनते हैं। मोहर्रम के दौरान मातम, नौहा, मजलिस, ताज़िया और अलम जैसे कई अन्य धार्मिक अनुष्ठान भी किए जाते हैं।

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मोहर्रम में काले वस्त्र पहनना केवल शोक की परंपरा नहीं बल्कि इमाम हुसैन के बलिदान के प्रति गहरा सम्मान, दुख और उनके सत्य के मार्ग पर चलने की प्रतिबद्धता व्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम है।

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