वाराणसी
मेरी कोशिश होगी कि मैं हर वर्ग, हर आंख की उम्मीद की रोशनी बनूं और सबके भरोसे पर खरा उतरूं – अनिल श्रीवास्तव

रिपोर्ट – प्रदीप कुमार
वाराणसी: विगत वर्षों की कोरोना महामारी के दंश ने मेरे बनारस शहर को बहुत तकलीफ़ दिया । हर तरफ अपनों की सिसकियां थीं । मेरे जेहन में आज भी वह दौर और उसकी कसक मौजूद हैं ।
नगर निकाय चुनाव में पार्टी की तरफ से मुझे मेयर पद का प्रत्यासी चुना गया, मैं इसके लिए अपनी नेता सोनिया गांधी,राहुल गांधी, प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी, प्रांतीय अध्यक्ष पूर्व विधायक अजय राय, छात्र राजनीति से मेरे साथ रहे पूर्व सांसद भाई डॉ राजेश मिश्रा के साथ साथ मैं स्थानीय स्तर पर अपने जिला एवं महानगर अध्यक्ष तथा सभी सम्मानित वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं व अपने सम्मानित कार्यकर्ता बंधुओं के प्रति हृदय से आभार प्रकट करता हूं जिन्होंने इस दरम्यान दिन – रात एक कर इस चुनाव में मुझे हिम्मत और ताकत दी ।
चुनाव कोई भी हों, वह अपने आप में बेहद अहम होते हैं । मैने अपने हर चुनाव को बेहद अहम और शिद्दत से लड़ा है । हम लोग दुर्घटना से राजनीति में आने वालों में से नहीं हैं । मेरे लिए जनता की सेवा ही वास्तविक मायने में राजनीति है । बेशक निकाय चुनाव सम्पन्न हो गए हैं, पर मेरी अपनी दिनचर्या वैसे का वैसे ही है। हां, चुनाव के वक्त बनारस के इतने बड़े नगरीय हिस्से में जाना, लोगों से मुखातिब होना, उनकी समस्याओं के बारे में जानना, विभिन्न बैठकों और सभाओं में शामिल होना, जरूर बढ़ गया। वैसे लोगों से लगातार मिलना, उनकी बातों को गौर से सुनना यह हमारी रोजमर्रा की दिनचर्या में प्रायः शुमार रहता है। बढ़ती उम्र ने शरीर को थोड़ा परेशान जरूर किया, पर जनता के सुख – दुःख के साथ जीने की आदत ने मुझमें इतनी शक्ति दी है कि मुझे अपने दुःख – दर्द और पीड़ा ने कभी हारने नहीं दिया। आज मैं जो कुछ भी हूं, उसमे मेरा कुछ भी नहीं, जो कुछ भी मेरा है, वह सब कुछ मेरे अपनों का है, जिन्हे मैं अपना परिवार मानता हूं । चुनाव प्रचार व मतदान की व्यस्तता ,एकाएक चुनाव खत्म होने पर शारीरिक राहत तो देती है, पर मानसिक राहत तो अपनो के साथ बैठकर उनसे तरह – तरह की सूचनाएं लेने, राजनैतिक विमर्श और हंसी मजाक में मुझे जो आत्मिक खुशी मिलती है, वह कहीं और नहीं। यही मेरे बनारस का मिजाज भी है, जिसे हम सब शिद्दत से जीते हैं । चुनाव सम्पन्न हो गए हैं, चुनावी समीकरण और उसके संभावित नतीजों और आंकड़ों की जोड़ घटाने का सिलसिला विजयश्री के औत्सुक्य के साथ क्रमशः जारी है।
मेरी नरगिस श्रीवास्तव ने निकाय चुनाव के दरम्यान पूरी निष्ठा के साथ मेरे साथ खड़ी रहीं । स्वभावतः बेहद संवेदनशील स्वभाव की नरगिस ने मुझे हर वक्त हौसला दिया। चुनाव के दरम्यान आने वाले उतार – चढ़ाव, तरह – तरह की समस्याओं को सुलझाने में मेरी मदद की। चुनाव में समय का सही उपयोग , चुनावी व्यस्तता के बीच मेरे सेहत की कुशक्षेम और इतना ही नहीं घर से बाहर निकलकर शहर के विभिन्न हिस्सों में चुनाव प्रचार आदि में भी ने मेरी मदद की ।
मेरी पत्नी बेहद संवेदनशील हृदय की हैं। दूसरों की पीड़ा देख वह बेहद असहज हो जाती हैं । बनारस की जनता आज जिन बुनियादी जरूरतों के लिए वह बराबर मुझसे चर्चा करती रहती हैं। बनारस की धार्मिक, सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने, बनारस की बनारसियत को अक्षुण्ण रखने के लिए वह सदैव चिंतित रहती हैं। उनकी सोच के केंद्र में बनारस और बनारस की जनता हमेशा से रही है । जनता के हक के लिए वह सदैव मुझे प्रेरित करती रहती हैं । मेरे पांच दशकों से भी अधिक के राजनैतिक जीवन की वह गवाह रही हैं। बनारस की यातायात, सीवर, खस्ताहाल सड़कों को देख वह काफी दुखी होती हैं ।
चुनाव में खड़े होने से पहले मेरी पत्नी ने मुझसे कहा था कि – अगर चुनाव में मुझे विजयश्री मिलती है तो मैं सबसे पहला काम बनारस की जनता को टैक्स के जंजाल से मुक्ति दिलाऊं और बनारस की जनता को अपने जनहित के कामों से उसकी उम्मीदों की लौ दे सकूं जिसकी रौशनी में वह अपने स्वर्णिम भविष्य का निर्माण कर सके । यही मेरी पहली और आखिरी चाहत होगी क्योंकि मेरे पास जो कुछ है, वह सब मेरे बनारस की जनता का ही दिया हुआ है । मेरा अपना कुछ भी नहीं ।