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वाराणसी

मार्कण्डेय महादेव मंदिर: काशी का वो शिव मंदिर जहाँ यमराज भी हो गए थे पराजित

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वाराणसी। गंगा और गोमती के संगम पर स्थित कैथी गांव का मार्कंडेय महादेव मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था, चमत्कार और अमरत्व की पौराणिक कथा का साक्षात प्रमाण है। सावन मास में यहां लाखों श्रद्धालु दूर-दूर से आकर शिवलिंग पर राम नाम लिखा बेलपत्र और एक लोटा जल अर्पित करते हैं, जिससे उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

यह मंदिर वाराणसी-गाजीपुर मार्ग पर स्थित है और पूर्वांचल के प्रमुख धार्मिक केंद्रों में इसकी गिनती होती है। सावन भर चलने वाले मेले में भक्तों की अपार भीड़ उमड़ती है। मंदिर के बारे में जो पौराणिक कथा प्रसिद्ध है, वह श्रद्धा को और भी गहरा बना देती है। कहा जाता है कि ऋषि मृकण्ड के पुत्र मार्कंडेय की जीवन अवधि केवल 12 वर्ष थी। जब वह उम्र पूरी होने पर भगवान शिव की तपस्या में लीन थे, तभी यमराज उन्हें लेने आए। लेकिन शिवजी ने साक्षात प्रकट होकर यमराज को पराजित कर दिया और मार्कंडेय को अमरत्व का वरदान दिया।

तभी से यह स्थल ‘मार्कंडेय महादेव मंदिर’ के नाम से विख्यात हो गया। मान्यता है कि इस मंदिर में शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से असाध्य रोग, कष्ट और संकट समाप्त हो जाते हैं। मंदिर की दीवारों में मार्कंडेय ऋषि की भी पूजा होती है, और श्रद्धालु महाशिवरात्रि और सावन के महीने में विशेष रूप से यहां दर्शन-पूजन हेतु आते हैं।

आज भी यहां का आध्यात्मिक वातावरण, गूंजते मंत्र, जलाभिषेक की परंपरा और श्रद्धालुओं की अगाध भक्ति इस बात की पुष्टि करते हैं कि यह स्थान न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि दिव्य भी है।

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