चन्दौली
पशु तस्करी का केंद्र बिंदु बनी जफरपुरवा चौकी !

कारखास, गुप्त कारखास और प्राइवेट व्यक्ति मिलकर कर रहे करोड़ों का वारा न्यारा
चंदौली (जयदेश)। जनपद चंदौली का सृजन मायावती के शासन काल में वर्ष 1997 ई. में हुआ था। उसके पूर्व चंदौली जनपद वाराणसी जिले के अधीन था। अर्थात पशु तस्करी का खेल काफी पुराना है। नेशनल हाईवे के माध्यम से पशु तस्करी का खेल वर्तमान में भी बदस्तूर जारी है। कई पुलिस अधीक्षक ईमानदार भी आयें। कुछ समय के लिए ब्रेक भी लगी। लेकिन पशु तस्कर व पुलिस विभाग के माहिर खिलाड़ी उस ब्रेक को तोड़ने में कामयाब रहे।
इस समय नेशनल हाईवे स्थित अलीनगर थाने की जफरपुरवा चौकी पशु तस्करी का केंद्र बिंदु बनी हुई है। अलीनगर थाने के विभागीय सूत्र बताते हैं कि थाने में ‘कारखास’ नियुक्त हैं। लेकिन कुछ ‘गुप्त कारखास’ भी हैं। ‘कारखास’ की जानकारी सबको होती है। लेकिन ‘गुप्त कारखास’ की जानकारी केवल साहब को रहती है। ‘कारखास‘ व ‘गुप्त कारखास’ मिलकर ‘प्राइवेट व्यक्ति’ या ’पेशेवर अभ्यस्त दलाल‘ की नियुक्ति करते हैं। क्योंकि उन्हें पशु तस्करी के खेल में महारथ हासिल होती है। इसलिए उनके ही द्वारा कार्य को अंजाम दिया जाता है।
हमारे यहां जब कोई वीआईपी आता है तो उसके साथ ‘पुलिस एस्कॉर्ट’ चलती है। ठीक उसी प्रकार पशु तस्करी कर रहे कुछ वाहनों के आगे वाराणसी जिले के बार्डर से चंदौली के बार्डर तक बकायदा ‘पुलिस एस्कॉर्ट’ चलती है। इस प्रकार पशु तस्करी के माध्यम से प्रतिमाह करोड़ों का वारा न्यारा होता है।
विभागीय सूत्र बताते हैं कि वही ‘कारखास’ नेशनल हाईवे पर चल रहे पशु वाहनों की मानीटरिंग भी करता है। दिलचस्प पहलू यह है कि पुलिस अधीक्षक आदित्य लांग्हे ने जब कार्यभार संभाला तो उन्होंने चंदौली जिले को ‘कारखास’ विहीन कर दिया था। समय चक्र बदला। परिवर्तन का दौर चला। कुछ ही समय में थाना प्रभारी व थानाध्यक्ष ने कुछ पुराने तो कुछ नए कारखासों पर भरोसा जताकर पशु तस्करी को अमली जामा पहना दिया। सिपाही या कारखास प्राइवेट व्यक्ति के माध्यम से आर्थिक लाभ पाने के लिए इतना बढ़िया ताना-बाना बुनते हैं कि थाना प्रभारी को मालामाल कर देते हैं। यदि पुलिस अधीक्षक गोपनीय जांच करायें तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।