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वाराणसी

काशी में जलती चिताओं के बीच खेली गयी मसाने की होली

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वाराणसी के हरिश्चंद्र घाट पर इस बार मसाने की होली ने एक अनोखा और रोमांचक दृश्य पेश किया। चिता की राख, नरमुंड की माला, मुंह में जिंदा सांप और गगनभेदी शिव तांडव के साथ इस उत्सव ने काशी की आध्यात्मिकता और रहस्यमयी परंपराओं को जीवंत कर दिया।

सोमवार को हजारों श्रद्धालु और पर्यटक इस अलौकिक नजारे के साक्षी बने, जहां किसी ने चिता की भस्म से खुद को नहलाया तो किसी ने चेहरे पर राख मलकर शिवमय हो जाने का अनुभव किया। घाट की गलियां राख से पट गईं, और हर ओर शिव भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा।

इस अनोखी होली को देखने के लिए देश-विदेश से करीब 5 लाख लोग वाराणसी पहुंचे, जिनमें 20 से अधिक देशों के पर्यटक भी शामिल थे। पहली बार इस आयोजन में कलाकारों द्वारा कोई करतब नहीं दिखाया गया, फिर भी माहौल इतना अद्भुत था कि लोग मंत्रमुग्ध हो गए।

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सुबह 11 बजे कीनाराम आश्रम से निकली शोभायात्रा ने इस उत्सव की भव्यता को और बढ़ा दिया। नागा संन्यासियों और संतों के साथ घोड़े-रथों पर निकली इस यात्रा में शिव तांडव का दिव्य प्रदर्शन हुआ, और ‘खेले मसाने में होरी…’ जैसे भजन-गानों पर लोग झूमते नजर आए।

एक विदेशी पर्यटक ने इसे अपने जीवन का सबसे अनूठा अनुभव बताया। हालांकि, इस बार कमेटी ने महिलाओं को चिता भस्म की होली में शामिल होने की अनुमति नहीं दी।काशी की इस अनोखी परंपरा ने एक बार फिर दुनिया को दिखा दिया कि यहां मृत्यु भी उत्सव का हिस्सा होती है और जीवन-मरण के इस चक्र में भी शिव की भक्ति का जश्न मनाया जाता है।

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