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गाजीपुर

कांवरियों से गुलजार हुआ बहरियाबाद मार्ग

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बहरियाबाद (गाजीपुर)। सावन महीने में शिवभक्तों की आस्था चरम पर है। बहरियाबाद एवं आस-पास के क्षेत्रों से कांवड़ यात्रा पर जाने का सिलसिला जारी है। कई कांवरिए पैदल गंगा की ओर रवाना हो रहे हैं, वहीं बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपनी निजी वाहनों से भी यात्रा कर रहे हैं।

ग्रामीण अंचलों से गुजरने वाले कांवड़ियों के लिए जगह-जगह रुकने और विश्राम का प्रबंध किया गया है। शिवभक्त बांस की कांवड़ पर दोनों ओर टोकरियां बांधकर पवित्र गंगाजल लाते हैं और सावन शिवरात्रि पर भगवान महादेव का जलाभिषेक करते हैं।

कांवड़ यात्रा का पौराणिक महत्व

श्रवण कुमार से जुड़ी कथा: कहा जाता है कि श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर चार धामों की यात्रा करवाई थी। उसी श्रद्धा से भक्त कांवड़ उठाते हैं।

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भगवान राम का अनुसरण: मान्यता है कि भगवान राम ने भी पिता दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गंगाजल लाकर भगवान शिव को अर्पित किया था।

भगवान परशुराम द्वारा शुरुआत: ऐसी भी कथा है कि परशुराम ने गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लाकर शिव का अभिषेक किया था।

समुद्र मंथन की कथा: समुद्र मंथन के समय निकले विष को पीने से शिवजी के शरीर पर पड़े प्रभाव को कम करने हेतु रावण ने कांवड़ में जल भरकर उन्हें चढ़ाया था।

भक्तों के अनुसार, यह यात्रा केवल धार्मिक रस्म नहीं बल्कि कठोर साधना भी है। नंगे पांव सैकड़ों किलोमीटर चलना और कांवड़ का भार उठाना अहंकार का नाश कर भगवान शिव के प्रति समर्पण का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि कांवड़ यात्रा से जीवन में सरलता आती है, मनोकामनाएं पूरी होती हैं और अश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।

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