वाराणसी
कबीर प्राकट्य स्थल लहरतारा में विशाल भंडारा और कबीर महोत्सव का आयोजन
रिपोर्ट – प्रदीप कुमार
वाराणसी। 3 से 5 जून तक कबीर प्राकट्य स्थली लहरतारा में विशाल भंडारा और कबीर महोत्सव का आयोजन वहां के महंत गोविंद दास शास्त्री जी के देखरेख में आयोजित किया जा रहा है।इस अवसर पर भक्तो के लिए विभिन्न कार्यक्रम जैसे योगा, भजन, संगीत, गोष्ठी का भी आयोजन किया जा रहा है ।संत कबीर अकादमी, संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश द्वारा अमृत उत्सव मे स्वर उत्सव: अनहद के अंतर्गत कबीर भजन का गायन निर्गुण बैंड द्धारा गाया जायेगा । जिसमे भाग लेंगे श्री सुजीत तिवारी एवम दल,वाराणसी से।
सूफ़ी और लोक गायन में विवेक विशाल एवम दल,प्रयागराज से आए कलाकार द्धारा प्रस्तुत किया जायेगा।
निर्गुण कवि सम्मेलन आखर में भाग लेने वाले कवि हैं।
डा वसीम कैंसर, और सुश्री नुसरत गोरखपुर से, रामायण धर द्विवेदी बस्ती से, डा प्रशान्त सिंह और दमदार बनारसी वाराणसी से भाग लेंगे।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि होंगे अमरनाथ उपाध्याय,
आई ए एस विशेष सचिव, संस्कृति/निदेशक संत कबीर अकादमी उत्तर प्रदेश सरकार।
इस आयोजन में भक्तों के अलावा शहर के कुछ गणमान्य नागरिक को भी आमंत्रित किया गया है ।इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में भक्तों के लिए भंडारे का का भी आयोजन किया गया है। संत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि थे. कबीर दास न सिर्फ एक संत थे बल्कि वे एक विचारक और समाज सुधारक भी थे. कबीरदास जी के दोहे जीवन की असली सच्चाई बयां करते हैं।
कहते हैं संत कबीर की दिव्य वाणी आज भी लोगों को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने में अहम भूमिक निभाती है। कबीर दास जयंती पर जानते हैं उनके वह प्रेरणादायक दोहे जो आपके जीवन को सही राह दिखाकर सफलता के मार्ग पर ले जा सकते हैं।
कबीर के दोहे
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय। कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।।
बुराई के त्याग में है भलाई – कबीर दास जी कहते हैं हमें कभी भी एक छोटे से तिनके की भी बुराई नहीं करना चाहिए, क्योंकि ये उड़कर अगर आपकी आंख में चला गया तो असहनीय पीडा देगा। अर्थात कभी किसी भी व्यक्ति की बुराई न करें। धन, दौलत, कपड़ों से लोगों को कभी नहीं आंकना चाहिए. न ही उनका उपहास करना चाहिए।जीवन में किसी को कमजोर न समझें क्योंकि वक्त पलटते देर नहीं लगती। आपके अच्छे विचार और व्यवहार ही सफलता की पहली सीढ़ी होते हैं।
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय । माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय ॥ हे मन !
धैर्य है सबसे बड़ी शक्ति – कबीरदास जी कहते हैं कि वक्त के साथ सारे काम पूरे हो जाते हैं, बस धैर्य का साथ कभी न छोड़ें, क्योंकि अगर कोई व्यक्ति एक ही दिन में सौ घड़े किसी पेड़ में डाल देगा तब भी फल तो समय आने पर ही लगेंगे। धैर्य मनुष्य की समझदारी का प्रतीक है. हड़बड़ी में या अति उत्साह में काम बिगड़ जाते हैं। इसलिए धीरज बनाए रखें, मेहनत से किया काम कभी खाली नहीं जाता. देर से ही सही लेकिन ईमानदारी के कर्म का फल बहुत मीठा होता है जो लंबे समय तक सुख देता है.
कबीरा ते नर अन्ध हैं, गुरु को कहते और । हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥
गुरु बिना जीवन अधूरा – इंसान ज्ञान के बिना अंधे व्यक्ति की तरह होता है। ज्ञान की प्राप्ति गुरु से होती है।गुरु का हमेशा सम्मान करें क्योंकि आपको तराशने वाले गुरु ही होते हैं। गुरु ही आपको जीवन में सही और गलता का फर्क करना बताते हैं। कबीरदास जी कहते हैं की वो नर अंधे हैं जो गुरु को भगवान से छोटा मानते हैं क्योंकि ईश्वर के रुष्ट होने पर एक गुरु का सहारा तो है लेकिन गुरु के नाराज होने के बाद कोई ठिकाना नहीं है।
कबीर के प्रमुख छः उपदेश इस प्रकार हैं…
ईश्वर निराकार है, ईश्वर का कोई आकार नहीं। ईश्वर को इधर-उधर बाहर ढूंढने से प्राप्त नहीं होने वाला, वह हमारे अंदर ही निहित है।
व्यर्थ के पाखंड और आडंबरों से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होने वाली बल्कि सच्चा ज्ञान मिलने पर ही ईश्वर की प्राप्ति होगी।
गुरु ही सच्चे ज्ञान को हासिल करने का मार्ग दिखा सकते हैं, वह ईश्वर के दर्शन करा सकते हैं।
बड़े-बड़े शास्त्रों ग्रंथों को पढ़ने से ज्ञान नहीं मिलता, बल्कि ज्ञान अपने अंदर के अंधकार को मिटाने और जीवन के व्यवहारिक अनुभवों से मिलता है।
लहरों के डर से किनारे पर बैठे रहने से लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती। लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जीवन रूपी समुद्र में छलांग मारकर लक्ष्य मोती हासिल करने पड़ते हैं
कोई कितना भी खराब व्यवहार करे हमें उसके साथ अच्छा व्यवहार ही करना चाहिये इससे बात भी नही बढ़ती और विरोधी का मन भी बदल सकता है।
उन्होंने कहा कि दुनिया में सबसे बड़ा अज्ञान है। अज्ञानी को धर्म का सहारा लेकर ज्ञानरुपी उजाले में ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं। निर्मल मन का आचरण सत्य धर्म है। मनुष्य के अंदर मानवता होगी तो वह धार्मिक होगा।
