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वाराणसी

कबीर परिनिर्वाण दिवस का आयोजन प्राचीन कबीर प्राकट्य स्थली पर महंत गोविंद दास के कुशल नेतृत्व में हुआ

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वाराणसी: कबीर साहेब जी हिंदी साहित्य के एक महान कवि होने के साथ ही एक समाज सुधारक संत थे, जिनका 505 वी कबीर परिनिर्वाण दिवस का आयोजन प्राचीन कबीर प्राकट्य स्थली पर महंत गोविंद दास जी के कुशल नेतृत्व में किया गया। जिसमे भजन, सत्संग, संगोष्ठी और भंडारा का सफल और वृहद स्तर पर आयोजन दो सत्रों में किया गया।पहले सत्र के मुख्य अतिथि प्रो हरि प्रसाद अधिकारी विशिष्ट अतिथि प्रो अनिल कुमार उपाध्याय पूर्व विभाग अध्यक्ष प्रत्रकारिता जनसंचार विभाग विद्यापीठ ने की कबीर के लिखे गए दोहों में छुपे संदेश को विस्तार से बताया।इसके बाद प्रो अनिल कुमार उपाध्याय ने जन को जागृत करने में उनके दोहों ने अहम भूमिका निभाई और समाज में फैले कुरीतियों पर प्रहार अपने वाणी के माध्यम से किया,जिसकी आज भी उतनी ही प्रासंगिकता है जितनी तब थी।इसके साथ ही डा मनोज कुमार सिंह ने उनके दोहों में जनसंचार का संदेश की प्रासंगिकता आज भी नए संचार माध्यमों से कम नहीं है।उनकी लेखनी उस वक्त के सामाजिक परिवेश को देखकर लिखा गया आज भी उसकी प्रासंगिकता एक कटु सत्य है। वहीं दूसरे सत्र में भी विभिन्न प्रांतों से आए भक्तो ने अपने विचार व्यक्त किए और भजन गाए।संत कबीर के वाणी को जन जन् तक पहुंचाने के लिए महंत गोविंद दास जी द्वारा कबीर जी के विभिन्न पहलुओं पर इस प्रकार अपनी बात रखी।

कबीर समाज में हो रहे अत्याचारों और कुरीतिओं को ख़त्म करने की बहुत कोशिश की, जिसके लिये उन्हें समाज से बहिष्कृत भी होना पड़ा, परन्तु वे अपने इरादों में अडिग रहे और अपनी अंतिम श्वास तक जगत कल्याण के लिये जीते रहे।
दूसरे सत्र कि अध्यक्षता हरिचंद कालेज के प्राचार्य प्रो रजनीश कुँवर , ड्रा उत्तम ओझा प्रो अशोक राजेश भारती कुमार सिंह ब्रिजेस जी
ग्राम प्रधान आशीष सरोज गोपाल वर्मा नीलेश दास प्रहलाद दास आदि लोगो ने विचार व्यक्ति किया।

कबीर साहब जी हमारे भारतीय इतिहास के एक महान कवि थे, जिन्होंने भक्ति काल में जन्म लिया और ऐसी अद्भुत रचनाएँ की, कि वे अमर हो गए।
निर्गुण ब्रह्म के उपासक बन गए।

वे शुरू से हमारे समाज में प्रचलित पाखंडों, कुरीतियों, अंधविश्वास, धर्म के नाम पर होने वाले अत्याचारों का खंडन और विरोध करते थे, और शायद यही वजह है की इन्होंने निराकार ब्रह्म की उपासना की।

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