धर्म-कर्म
छठ महापर्व का आज दूसरा दिन, जानिए खरना का महत्व और पूजा विधि
छठ पूजा के दूसरे दिन खरना पूजा का विधान है। खरना से आशय शुद्धिकरण से है। इसे लोहंडा भी कहते हैं। इस दिन विशेष प्रकार का प्रसाद तैयार किया जाता है।
छठी मैया और सूर्य की उपासना का महापर्व छठ का आज दूसरा दिन है और दूसरे दिन खरना की परंपरा निभाई जाती है। खरना से आशय शुद्धिकरण से है। इसे लोहंडा भी कहते हैं। इस दिन विशेष प्रकार का प्रसाद तैयार किया जाता है। छठ पूजा का व्रत कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। यह व्रत 36 घंटों के लिए रखा जाता है। इस अवधि में व्रती को बिना कुछ खाय-पीये रहना पड़ता है। मान्यता है कि जो व्रती छठ के नियमों का पालन विधि-विधान से करती हैं उनकी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। माना जाता है कि खरना पूजा के बाद ही घर पर छठी मैया का आगमन होता है।
खरना का समय 9 नवंबर को सायं 5 बजकर 45 मिनट से शाम 6 बजकर 25 मिटन तक रहेगा। वहीं सायंकालीन अर्घ्य देने का समय शाम 4 बजकर 30 मिनट से 5 बजकर 26 मिनट तक रहेगा।
खरना के दिन व्रती के द्वारा शुद्ध मन से छठी मैया और सूर्य देव की उपासना की जाती है। उन्हें गुड़ की खीर के प्रसाद का भोग लगाया जाता है। इसे विशेष प्रकार से बनाया जाता है। इसमें शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। प्रसाद को नए मिट्टी के चूल्हे में तैयार किया जाता है। स्वयं व्रती ही इस प्रसाद को तैयार करती हैं। धार्मिक मान्यता है कि ऐसा करने से व्रती का तन-मन पूर्ण रूप से शुद्ध हो जाता है।
इस दिन व्रती सुबह स्नान करके साफ-सुधरे वस्त्रों को धारण करें
व्रत नाक से लेकर माथे तक अपने माथे पर सिंदूर लगाएं इस दिन व्रती दिन भर व्रत रखें।शाम के समय गुड़ की खीर बनाकर प्रसाद तैयार करें।फिर पूजा करने के बाद इस प्रसाद को ग्रहण करें। इस प्रसाद को फिर अन्य लोगों में बांटें।
इस प्रसाद के बाद व्रती का कठिन व्रत शुरू हो जाता है। धार्मिक मान्यता है कि छठी मैया संतान की रक्षा करने वाली देवी हैं और सूर्य की उपासना करने से मनुष्य को सभी तरह के रोगों से छुटकारा मिल जाता है। जो सूर्य की उपासना करते हैं, वे दरिद्र, दुखी, शोकग्रस्त और अंधे नहीं होते हैं। संतान की रक्षा, दीर्घायु और स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद पाने के लिए यह पूजा की जाती है।