धर्म-कर्म
सबका कल्याण करते हैं ‘बाबा काल भैरव’
काल भैरव की पूजा से मनुष्य पूरे वर्ष विपदाओं और अकाल मृत्यु से बचा रहता है
शिव तत्व सनातन संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। भगवान शिव अपने भक्तों के समक्ष कभी रक्षक तो कभी संहारक रूप में प्रकट होते हैं। अनंत और बुद्धिमान होते हुए भी वे सृष्टि के पालन और संहार के लिए विभिन्न रूप धारण करते हैं। कभी एकादश रुद्र के रूप में तो कभी भूत, प्रेत, पिशाच, डाकिनी, राकिनी, कुष्मांड, भैरव, योगिनी आदि रूपों में प्रकट होकर सृष्टि को संचालित करते हैं। शिवपुराण के शतरुद्र संहिता में भैरव अवतार की कथा का वर्णन मिलता है। एक बार सुमेरु पर्वत पर ब्रह्मा और विष्णु के साथ महर्षि उपस्थित थे। महर्षियों ने सृष्टि के प्रधान देवता के विषय में जानने की इच्छा प्रकट की।
जब वेदों ने शिव को परमतत्व बताया तो ब्रह्मा ने इसका खंडन करते हुए कहा कि शिव तो उनके ललाट से उत्पन्न हुए हैं। इस पर एक दिव्य ज्योति प्रकट हुई जिससे त्रिशूल और दंड धारण किए हुए एक भयंकर पुरुषाकृति का जन्म हुआ।
इस स्वरूप ने ब्रह्मा के अहंकार को समाप्त करने के लिए उनके पांच मुखों में से एक को नष्ट कर दिया। यही स्वरूप कालभैरव कहलाए।वामन पुराण में अंधकासुर की कथा मिलती है जो देवताओं सहित ब्रह्मा, विष्णु, और महेश द्वारा भी अवध्य था। उसके अहंकार का नाश करने के लिए भैरव का अवतरण हुआ।
मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी को इनका जन्म हुआ जिसे भैरवाष्टमी या कालाष्टमी कहते हैं। क्रोध से उत्पन्न होने के कारण इनका स्वरूप अत्यंत भयंकर था। दंड धारण करने के कारण इन्हें दंडपाणि कहा गया। भैरव का अर्थ होता है दाहक, भयानक, और विनाशकारी।
बाल रूप में इन्हें बटुक भैरव और आनंद मुद्रा में आनंद भैरव कहा जाता है। इनका वाहन कुत्ता है और नाथपंथ के योगी इन्हें आराध्य मानते हैं। शिव की प्रसिद्ध पुरियों में ये नगर के रक्षक कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं।
स्कंदपुराण के काशी खंड में उल्लेख है कि मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी को उपवास और जागरण करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। कालभैरव की पूजा से व्यक्ति पूरे वर्ष विपदाओं और अकाल मृत्यु से बचा रहता है। पितरों का उद्धार भी संभव होता है, जिससे वे नरक से मुक्त हो जाते हैं।