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श्रीराम के प्रति गज़ब भक्ति, बुजुर्ग ने 25 वर्षों में लिख डाला 50 लाख बार सीताराम

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अमेठी के मुसाफिरखाना में गोमती नदी से सटे निजामुद्दीनपुर गांव में रहने वाले रामचंद्र यादव एक ऐसे शख्स हैं जिन्हें पूजा अर्चन करने की ही नहीं बल्कि इन्हें सीताराम नाम लिखने की जिद है। अभी तक रामचंद्र 25 वर्ष में लगभग 50 लाख सीता-राम नाम लिखकर अपने जीवन को धन्य मान चुके हैं।

70 वर्षीय राम चंद्र यादव की मानें तो ईश्वर का नाम लेने के साथ-साथ नाम लिखने से भी ईश्वर भक्ति को प्रदर्शित किया जा सकता है जिससे सुकून मिलता है। खेती व गृहस्थ काम निपटाने के बाद जो समय निकलता है घर बैठकर सीताराम का नाम लिखते हैं और हर वर्ष शिवरात्रि के दिन सरयू नदी में इस सीताराम कागजी को विसर्जित करते रहे हैं।

राम चन्द्र की माने तो हर वर्ष गृहस्थ जीवन में निकले समय के बीच लगभग दो लाख सीताराम के शब्द अपने हाथ से लिखने का काम कर चुके हैं।राम चंद्र यादव बताते हैं कि जो सुकून का एहसास मुझे इस नाम को लिखने से होता है उसके बारे में मैं बयां नहीं कर सकता हूं, लिखते वक्त सीताराम का अनुश्रवण मुख से भी हो जाता है जो इस मानवीय जीवन को दिल से सुकून मिलता है।

धूप हो, छाया हो, बरसात हो या गर्मी हो जब भी मौका मिलता है जहां भी मौका मिलता है, सुबह रात हर पल हमें अपने कार्य के अलावा अपने भक्ति के आस्था मे इस कार्य को करता हूँ इससे हमें बहुत ही सुकून मिलता है और यह निरंतरता का क्रम पिछले 25 सालों से जारी है। काफी समय पूर्व क्षेत्र के गांवों में भागवत कथा सुनने के बाद आचार्यों द्वारा मुझे इस भक्ति की ललक प्राप्त हुई। वहीं से मैंने इस क्रम को जारी रखा और आज लाखों की संख्या में सीताराम लिखकर इस कार्य को कर रहा हूँ।

अपने आप में अनूठी शख्सियत चंदर दादा के नाम से जाने जाने वाले राम चंद्र बताते हैं कि मेरे लिए यह कोई पेशा नहीं बस आत्म तसल्ली एवं आत्ममंथन के लिए मैं इस कार्य को अंजाम दे रहा था। मुझे नहीं पता कि कब यह 25 साल गुजर गए और लाखों बार सीताराम नाम मैं लिख चुका हूॅं और आज श्री राम को अपने घर पधारने की खुशी में मन प्रफुल्लित है और फुर्सत के दिनों में भगवान के इस बालक रूप में दर्शन कर अपने आप धन्य मानूंगा।

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