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धर्म-कर्म

अनंत पापों से मुक्ति के लिए करें अनंत चतुर्दशी व्रत

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रिपोर्ट – प्रदीप कुमार

हिंदू पञ्चाङ्ग के अनुसार प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष के दिन अनंत चतुर्दशी व्रत का हिंदू धर्म में बहुत ही विशेष रूप से मनाया जाता है ,।
इसे अनंत चौदस के नाम से भी जाना जाता है।
वस्तुत: इस वर्ष गुरूवार 28 सितम्बर को मनाया जायेगा अनंत चतुर्दशी व्रत।
इस व्रत में भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा होती है।
भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी कहा जाता है।
इस दिन अनंत भगवान (भगवान विष्णु) की पूजा के पश्चात बाजू पर अनंत सूत्र बांधा जाता है।
ये कपास या रेशम से बने होते हैं और इनमें चौदह गाँठें होती हैं।
अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश विसर्जन भी किया जाता है।
इसलिए इस पर्व का महत्व और भी बढ़ जाता है।
अनंत चतुर्दशी का शास्त्रोक्त नियम……!!
उक्त बातें आयुष्मान ज्योतिष परामर्श सेवा केन्द्र के संस्थापक साहित्याचार्य ज्योतिर्विद आचार्य चन्दन तिवारी ने बताया कि इसके लिए चतुर्दशी तिथि सूर्य उदय के पश्चात दो मुहूर्त में व्याप्त होनी चाहिए।
यदि चतुर्दशी तिथि सूर्य उदय के बाद दो मुहूर्त से पहले ही समाप्त हो जाए, तो अनंत चतुर्दशी पिछले दिन मनाये जाने का विधान है।
इस व्रत की पूजा और मुख्य कर्मकाल दिन के प्रथम भाग में करना शुभ माने जाते हैं। यदि प्रथम भाग में पूजा करने से चूक जाते हैं, तो मध्याह्न के शुरुआती चरण में करना चाहिए।
मध्याह्न का शुरुआती चरण दिन के सप्तम से नवम मुहूर्त तक होता है।

अनंत चतुर्दशी व्रत और पूजा विधि……….!!

अग्नि पुराण में अनंत चतुर्दशी व्रत के महत्व का वर्णन मिलता है।
इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा करने का विधान है।
यह पूजा दोपहर के समय की जाती है।
इस व्रत की पूजन विधि इस प्रकार है-

इस दिन प्रातःकाल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें और पूजा स्थल पर कलश स्थापना करें।
कलश पर अष्टदल कमल की तरह बने बर्तन में कुश से निर्मित अनंत की स्थापना करें या आप चाहें तो भगवान विष्णु की तस्वीर भी लगा सकते हैं।
इसके बाद एक धागे को कुमकुम, केसर और हल्दी से रंगकर अनंत सूत्र तैयार करें, इसमें चौदह गांठें लगी होनी चाहिए।
इसे भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने रखें।
अब भगवान विष्णु और अनंत सूत्र की षोडशोपचार विधि से पूजा शुरू करें और नीचे दिए गए मंत्र का जाप करें।
पूजन के बाद अनंत सूत्र को बाजू में बांध लें।

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अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।।

पुरुष अनंत सूत्र को दांये हाथ में और महिलाएं बांये हाथ में बांधे।
इसके बाद ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए और सपरिवार प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।

अनंत चतुर्दशी का महत्व.………!!

पौराणिक मान्यता के अनुसार महाभारत काल से अनंत चतुर्दशी व्रत की शुरुआत हुई।
यह भगवान विष्णु का दिन माना जाता है। अनंत भगवान ने सृष्टि के आरंभ में चौदह लोकों तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुवः, स्वः, जन, तप, सत्य, मह की रचना की थी।
इन लोकों का पालन और रक्षा करने के लिए वह स्वयं भी चौदह रूपों में प्रकट हुए थे, जिससे वे अनंत प्रतीत होने लगे। इसलिए अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और अनंत फल देने वाला माना गया है।
मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ यदि कोई व्यक्ति श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करता है, तो उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण होती है। धन-धान्य, सुख-संपदा और संतान आदि की कामना से यह व्रत किया जाता है।
इस दिन भगवान विष्णु की लोक कथाएं सुनी जाती है।

अनंत चतुर्दशी की कथा…….!!

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महाभारत की कथा के अनुसार कौरवों ने छल से जुए में पांडवों को हरा दिया था। इसके बाद पांडवों को अपना राजपाट त्याग कर वनवास जाना पड़ा।
इस दौरान पांडवों ने बहुत कष्ट उठाए।
एक दिन भगवान श्री कृष्ण पांडवों से मिलने वन पधारे।
भगवान श्री कृष्ण को देखकर युधिष्ठिर ने कहा कि, हे मधुसूदन हमें इस पीड़ा से निकलने का और दोबारा राजपाट प्राप्त करने का उपाय बताएं।
युधिष्ठिर की बात सुनकर भगवान ने कहा आप सभी भाई पत्नी समेत भाद्र शुक्ल चतुर्दशी का व्रत रखें और अनंत भगवान की पूजा करें।

इस पर युधिष्ठिर ने पूछा कि, अनंत भगवान कौन हैं?
इनके बारे में हमें बताएं।
इसके उत्तर में श्री कृष्ण ने कहा कि यह भगवान विष्णु के ही रूप हैं।
चतुर्मास में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर अनंत शयन में रहते हैं।
अनंत भगवान ने ही वामन अवतार में दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया था। इनके ना तो आदि का पता है न अंत का इसलिए भी यह अनंत कहलाते हैं अत: इनके पूजन से आपके सभी कष्ट समाप्त हो जाएंगे।
इसके बाद युधिष्ठिर ने परिवार सहित यह व्रत किया और पुन: उन्हें हस्तिनापुर का राज-पाट मिला।

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार प्राचीन समय में सुमंत नाम के एक ऋषि हुआ करते थे ।उनकी पत्नी का नाम था दीक्षा।
कुछ समय के पश्चात दीक्षा ने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया जिसका नाम रखा गया सुशीला।
लेकिन होनी का खेल कुछ ही समय के पश्चात सुशीला के सिर से मां का साया उठ गया।
अब ऋषि को बच्ची के लालन-पालन की चिंता होने लगी तो उन्होंने दूसरा विवाह करने का निर्णय लिया।
उनकी दूसरी पत्नी और सुशीला की सौतेली मां का नाम कर्कशा था।
वह अपने नाम की तरह ही स्वभाव से भी कर्कश थी।
जैसे तैसे प्रभु कृपा से सुशीला बड़ी होने लगी और वह दिन भी आया जब ऋषि सुमंत को उसके विवाह की चिंता सताने लगी।
काफी प्रयासों के पश्चात कौण्डिन्य ऋषि से सुशीला का विवाह संपन्न हुआ।
लेकिन यहां भी सुशीला को दरिद्रता का ही सामना करना पड़ा।
उन्हें जंगलों में भटकना पड़ रहा था।
एक दिन उन्होंने देखा कि कुछ लोग अनंत भगवान की पूजा कर रहे हैं, और हाथ में अनंत रक्षासूत्र भी बांध रहे हैं।
सुशीला ने उनसे अनंत भगवान की उपासना के व्रत के महत्व को जानकर पूजा का विधि विधान पूछा और उसका पालन करते हुए अनंत रक्षासूत्र अपनी कलाई पर भी बांध लिया।
देखते ही देखते उनके दिन फिरने लगे। कौण्डिन्य ऋषि में अंहकार आ गया कि यह सब उन्होंने अपनी मेहनत से निर्मित किया है, काफी हद तक सही भी था प्रयास तो बहुत किया था।
अगले ही वर्ष ठीक अनंत चतुर्दशी की बात है सुशीला अनंत भगवान का शुक्रिया कर उनकी पूजा आराधना कर अनंत रक्षासूत्र को बांध कर घर लौटी तो कौण्डिन्य को उसके हाथ में बंधा वह अनंत धागा दिखाई दिया और उसके बारे में पूछा।
सुशीला ने खुशी-खुशी बताया कि अनंत भगवान की आराधना कर यह रक्षासूत्र बंधवाया है ।
इसके पश्चात ही हमारे दिन बहुरे हैं।
इस पर कौण्डिन्य खुद को अपमानित महसूस करने लगे कि उनकी मेहनत का श्रेय सुशीला अपनी पूजा को दे रही है। उन्होंने उस धागे को उतरवा दिया।
इससे अनंत भगवान रूष्ट हो गये और देखते ही देखते कौण्डिन्य अर्श से फर्श पर आ गिरे।
तब एक विद्वान ऋषि ने उन्हें उनके किये का अहसास करवाया और कौण्डिन्य को अपने कृत्य का पश्चाताप करने की कही।
लगातार चौदह वर्षों तक उन्होंने अनंत चतुर्दशी का उपवास रखा उसके पश्चात भगवान श्री हरि प्रसन्न हुए और कौण्डिन्य व सुशीला फिर से सुखपूर्वक रहने लगे।

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