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वाराणसी

धर्म है तो धरती भी स्वर्ग समान है – राजेश जैन

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रिपोर्ट – प्रदीप कुमार
आशाए हैं उम्मीदें हैं खुशियां भरा जहान है
-अंतरंग के लोभ से दूर रहिए-
दशलक्षण महापर्व का चतुर्थ दिवस-
वाराणसी। भारत बसुधंरा धार्मिक विविधताओ का देश है । भिन्न-भिन्न धर्मानुययियों में धार्मिक समरसता भी है। सभी परस्पर अन्य धर्मो का आदर और सम्मान करते है और मूल में देखें तो भारत बर्ष सभी धर्म प्राणी मात्र के कल्याण की बात करते है ।
भिन्न भिन्न धर्मो के रूप में भारतीय संस्कृति के अलग-अलग रंगो को अनुभव करना चाहिए।
जैन धर्म का पर्युषण पर्व मानव के कल्याण के लिए यह सिखलाता है- जैन धर्म में प्रथम अध्याय क्षमा धर्म और अन्त भी विश्वमैत्री क्षमावाणी के रूप में मनाता है । सम्पूर्ण जीवन के लिए इस कल्याणकारी बात को ध्यान में रखते हुए जैन मतावलंबी समस्त मानव के हित हेतु एवं स्वयं के कल्याण के लिए यह दशलक्षण पर्व मनाता है।
श्री दिगम्बर जैन समाज काशी के तत्वावधान में शुक्रवार को भी प्रातः बेला से ही जैन मतावलंबी दस वृत्तियो का व्रत लेकर धर्म-ध्यान, व्रत, प्रभु की स्तुति हुए तल्लीन रहे।
वाराणसी के हर मंदिरो में इन दिनो अनेको धार्मिक अनुष्ठान सुबह से शाम तक भक्तगण कर रहे है।
गुरुवार को प्रातः भगवान पार्श्वनाथ जन्म कल्याणक भूमि भेलूपुर में जहां भक्तगण तीर्थंकरो की पूजा-अभिषेक- जपमाला, इत्यादि कर रहे है वही नीचे प्रवचन हाल में प्रोःअशोक जैन जी के कुशल निर्देशन में भक्तगण क्षमावाणी विधान पूरे भक्ति के साथ कर रहे है। उदयराज खडगसेन दिगम्बर जैन मन्दिर भेलूपुर मे भी भक्ति के साथ धार्मिक आयोजन किए जा रहे है। नगर के अन्य मंदिरो मे भी कई अनुष्ठान चल रहे है।
शुक्रवार को कई जैन मन्दिरो में देवी पद्मावती मां का श्रृंगार एवं पूजन किया गया।
सायंकाल भेलूपुर स्थित जैन मन्दिर में धर्म के चतुर्थ अध्याय “उत्तम शौच धर्म ” पर व्याख्यान देते हुए प्रो: फूल चन्द्र प्रेमी जी ने कहां – ह्रदय से लोभ का त्याग करना ही शौच धर्म है, लोभ ही संपूर्ण पाप का जनक है।
जिस व्यक्ति ने अपने मन को निरलोभीय बना लिया है,मोह माया से संतोष धारण कर लिया है, उसे जीवन में परम शान्ती निश्चित मिलती है।
खोजंवा स्थित जैन मंदिर मे शास्त्र प्रवचन करते हुए डॉ मुन्नी पुष्पा जैन ने कहां- पर्युषण शुद्ध रूप आध्यात्मिक पर्व है।इसमें आत्मनिरीक्षण-आत्मचिंतन ही नही आत्ममंथन की प्रक्रियाए भी निहित है-उन्होंने कहां- जैन धर्म में अहिंसा का सबसे ऊंचा स्थान है-इसलिए दीन दुखियो- प्राणियो पर हमेशा करूणा-दया का भाव रखना चाहिए।
ग्वाल दास लेन स्थित मन्दिर जी में पं: सुरेंद्र शास्त्री ने कंहा- यह पर्व मानव कल्याण के लिए है, ये मनुष्य को क्षमावान बनाता है, यह पर्व लोक-परलोक में सुख देने वाला है।
उन्होंने कंहा-सरलता की अनुपस्थिती में शुचिता संभव नही ,चित्त की मलिनता का मूल कारण लोभ-लालच है।
प्रत्येक आत्मा में निर्मल होने की शक्ति है।
सायंकाल तीर्थंकरो,क्षेत्रपाल बाबा, देवी पद्मावती मां की आरती की गई।
आयोजन में प्रमुख रूप से दीपक जैन, राजेश जैन, अजीत जैन, ललित पोद्दार,,सौमित्र जैन, राजीव जैन, संजय जैन उपस्थित थे।

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