वाराणसी
गंगा में बेधड़क दौड़ रहीं डीजल नावें, सीएनजी चालित का दायरा सिमटा
वाराणसी। गंगा केवल नदी नहीं, जीवन और आस्था का प्रतीक है। उसकी लहरों में पीढ़ियों से मल्लाहों की आजीविका जुड़ी है और उसी धारा पर असंख्य जलीय जीवों का अस्तित्व टिका हुआ है। लेकिन बीते कुछ वर्षों से गंगा में डीजल से बढ़ता प्रदूषण इस जीवनरेखा के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है। स्थिति यह है कि स्वच्छ ईंधन पर चलने वाली सीएनजी नावों का संचालन लगातार सीमित होता जा रहा है, जबकि डीजल चालित नावें बेधड़क गंगा में उतारी जा रही हैं।
कुछ वर्ष पहले गंगा को प्रदूषण से बचाने की दिशा में पहल की गई थी। गेल के सीएसआर के तहत नगर निगम ने नावों में सीएनजी इंजन लगाए जाने का कार्य भी कराया था। उस समय गंगा किनारे वातावरण में सुधार महसूस किया जाने लगा था, लेकिन अब संबंधित विभागों की उदासीनता के चलते यह प्रयास ठप पड़ गया है। वर्तमान में गंगा की लहरें एक बार फिर डीजल के धुएं से घुट रही हैं और आर्थिक लाभ की होड़ में नियमों की अनदेखी कर नाव संचालन किया जा रहा है।
इस समय गंगा में 20 क्रूज, 220 डबल डेकर, 1800 मोटर बोट और 250 चप्पू वाली नावें संचालित हो रही हैं। इनमें से लाइसेंस केवल लगभग 800 नावों के पास हैं। सीएनजी आपूर्ति को लेकर गेल के स्टेशनों पर सख्ती है और केवल लाइसेंसधारी नावों को ही गैस दी जाती है। हालांकि, पिछले दो वर्षों से नगर निगम में नए लाइसेंस बनने की प्रक्रिया बंद पड़ी है।
प्रहलाद घाट निवासी जगदीश साहनी ने बताया कि नया लाइसेंस बनवाने के लिए एक स्वयं का पुराना और एक अन्य सक्रिय लाइसेंस होना आवश्यक बताया जाता है। इस व्यवस्था के चलते बड़ी संख्या में नावें बिना लाइसेंस गंगा में संचालित हो रही हैं। हाल के वर्षों में मल्लाह समुदाय से इतर लोग भी नाव बनवाकर गंगा में उतार रहे हैं। नाविकों का आरोप है कि दबंग और पूंजीपति वर्ग नाव संचालन के क्षेत्र में प्रवेश कर रहा है, जबकि परंपरागत माझी महीनों से कार्यालयों के चक्कर काटने को मजबूर हैं।
नाविकों का कहना है कि आरटीओ विभाग की ओर से यह कहा जाता है कि जो भी आएगा, उसका लाइसेंस बनाया जाएगा, लेकिन व्यवहारिक रूप से अभी तक लाइसेंस निर्माण की प्रक्रिया शुरू ही नहीं हुई है। नतीजतन, वर्तमान में गंगा में 1200 से अधिक नावें बिना लाइसेंस के संचालित की जा रही हैं।
सूचीबद्ध नावों का रिकॉर्ड न होने से सुरक्षा और निगरानी से जुड़ी समस्याएं भी सामने आ रही हैं। जल पुलिस प्रभारी राजकिशोर पाण्डेय के अनुसार, नावों का सही रिकार्ड सुरक्षा व्यवस्था के लिए अत्यंत आवश्यक है, लेकिन मौजूदा अव्यवस्था के कारण यह कार्य चुनौतीपूर्ण बनता जा रहा है।
नगर निगम के पीआरओ संदीप श्रीवास्तव ने स्पष्ट किया कि गंगा में संचालित नावों को लेकर अब नगर निगम की कोई भूमिका नहीं है। वहीं स्थानीय लोगों का कहना है कि जब लगभग 50 प्रतिशत नावें सीएनजी से संचालित हो रही थीं, तब गंगा किनारे का वातावरण अपेक्षाकृत बेहतर महसूस होता था, लेकिन डीजल चालित इंजनों की संख्या बढ़ने से प्रदूषण फिर से गहराता जा रहा है।
गेल के अनुसार, रविदास पार्क स्थित सीएनजी स्टेशन की क्षमता 4000 किलोग्राम प्रतिदिन है, जबकि यहां प्रतिदिन केवल 100 किलोग्राम की बिक्री हो रही है। वहीं नमो घाट खिड़किया स्थित स्टेशन की क्षमता 25,000 किलोग्राम प्रतिदिन है, जहां रोजाना करीब 2000 किलोग्राम सीएनजी की बिक्री होती है। अनुमान है कि लगभग 800 नावें सीएनजी से संचालित हो रही हैं, जबकि शेष डीजल पर निर्भर हैं। बताया गया कि इस वर्ष लगभग 1200 नई नावें गंगा में उतारी गई हैं, जो न तो सीएनजी पर चल रही हैं और न ही उनके पास लाइसेंस है।
डीजल से निकलने वाले धुएं में पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे सूक्ष्म कण होते हैं, जो फेफड़ों में गहराई तक जाकर अस्थमा और हृदय रोग जैसी समस्याएं बढ़ाते हैं। नाइट्रोजन ऑक्साइड जल और वायु प्रदूषण के साथ श्वसन संबंधी रोगों को जन्म देता है। सल्फर डाइऑक्साइड आंखों और गले में जलन के साथ जलीय जीवन को नुकसान पहुंचाता है। कार्बन मोनोऑक्साइड शरीर की ऑक्सीजन वहन क्षमता को घटाता है, जबकि ब्लैक कार्बन जल को गर्म कर जलीय जैव-विविधता के लिए खतरा बनता है।
गंगा में बढ़ता डीजल प्रदूषण न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि आस्था, आजीविका और स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है।
