गाजीपुर
क्या नोनहरा थाने की घटना, 2014 में सुहवल थाने में हुई घटना की पुनरावृत्ति है?
गाजीपुर। नोनहरा थाना क्षेत्र में बीते मंगलवार-बुधवार की रात पुलिस द्वारा किए गए लाठीचार्ज में एक दिव्यांग भाजपा कार्यकर्ता सियाराम उर्फ जोखू की पुलिस की पिटाई से मौत हो गई। आरोप है कि पुलिस की बर्बरता के कारण ही सियाराम उर्फ जोखू की मौत हुई है।
इस दर्दनाक घटना ने वर्ष 2014 में हुए सुहवल थाने की उस घटना की याद ताज़ा कर दी है, जब तत्कालीन भाजपा जिला मीडिया प्रभारी कमलेश सिंह को न्याय दिलाने के लिए पूर्व जिला अध्यक्ष बृजेन्द्र राय के नेतृत्व में पार्टी कार्यकर्ता और आमजन भारी संख्या में थाने के बाहर धरने पर बैठे थे। वह धरना 2 अगस्त से 4 अगस्त 2014 तक चला था।
सूत्रों के अनुसार, 4 अगस्त को पुलिस प्रशासन ने तत्कालीन भाजपा जिला अध्यक्ष कृष्ण बिहारी राय से यह पूछा कि क्या यह धरना पार्टी समर्थित है। जवाब में कथित रूप से कहा गया कि यह धरना भाजपा का नहीं है और पार्टी का इससे कोई लेना-देना नहीं है। इसके तुरंत बाद तत्कालीन थाना प्रभारी प्रवीण यादव ने भारी पुलिस बल के साथ धरना दे रहे भाजपा कार्यकर्ताओं पर लाठीचार्ज करवा दिया।
उस लाठीचार्ज में पूर्व जिलाध्यक्ष बृजेंद्र राय, पूर्व ब्लॉक प्रमुख अनिल राय उर्फ बच्चन, अशोक पाण्डेय, रघुवंश सिंह, स्व. गिरधारी सिंह, ओंकार राय सहित कुल 17 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था। एक सप्ताह बाद सभी कार्यकर्ता जेल से रिहा हुए।
तब की घटना और इस घटना में अंतर यह है कि 2014 की घटना में भाजपा कार्यकर्ता धरने पर थे, लेकिन तब राज्य में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। जबकि आज, जब भाजपा की ही सरकार सत्ता में है, उसी पार्टी के कार्यकर्ता पुलिस बर्बरता के शिकार हो रहे हैं। यही कारण है कि जिले में चर्चा का विषय यह बन गया है कि “क्या इस बार भी पार्टी ने वैसा ही रुख अपनाया जैसा 2014 में देखा गया था?”
क्या दिव्यांग कार्यकर्ता सियाराम की मौत भी उसी राजनीतिक असंवेदनशीलता का परिणाम है? यह प्रश्न अब न केवल भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच, बल्कि आम जनमानस में भी उठ रहा है।
