हेल्थ
पूर्वांचल में स्वास्थ्य सेवा की मिसाल बना उपकार हॉस्पिटल

वाराणसी का उपकार हॉस्पिटल बना कैंसर मरीजों की उम्मीद, महानगरों जैसी सुविधा अब स्थानीय स्तर पर
डॉक्टर स्नेहिल पटेल ने साझा की संस्थापक पिता की प्रेरणादायक कहानी
वाराणसी स्थित सुंदरपुर नारिया उपकार हॉस्पिटल एंड कैंसर इंस्टिट्यूट के डायरेक्टर स्नेहिल पटेल ने जय देश न्यूज़ के साक्षात्कार में बताया कि इस हॉस्पिटल की स्थापना सन 1990 में मेरे पिताजी डॉक्टर एस.जे. पटेल द्वारा की गई थी।
मेरे पिताजी वाराणसी के राजा तालाब के बगल में हरसोस गाँव के निवासी हैं और माताजी कानपुर की रहने वाली हैं। तब उस समय इधर हॉस्पिटल बिल्कुल नहीं हुआ करते थे और किसी भी रोग के डॉक्टर भी बिल्कुल नहीं रहा करते थे। सिर्फ मेरा ही हॉस्पिटल था और अगर कोई हॉस्पिटल था भी, तो वह सरकारी था, जहां मरीजों को जाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था।
लेकिन इस हॉस्पिटल का सारा श्रेय मेरी माताजी ममता पटेल को जाता है क्योंकि उस जमाने में महिला रोग विशेषज्ञ (गायनोलॉजिस्ट) बिल्कुल नहीं थीं। इस क्षेत्र में जो भी डिलीवरी संबंधित महिलाएं आती थीं, वे मेरी माताजी से ही इलाज करवाती थीं।
क्योंकि मेरी माताजी ममता पटेल पढ़ी-लिखी और एक योग्य डॉक्टर थीं। वे किसी भी महिला मरीज की परफेक्ट टाइम पर नॉर्मल डिलीवरी कराने का पूरा प्रयास करती थीं और हो भी जाता था। क्योंकि उस समय ऑपरेशन (सिजेरियन) नाम मात्र ही होता था।
रोगी किसी भी हालत में आए, मगर मेरे यहां से जाने के बाद बिल्कुल ठीक रहता था। वैसे मेरी माताजी की यही सोच थी कि हम लोग मिलकर इस उपकार हॉस्पिटल में लोगों का केवल उपकार ही करें, तब ही तो हमारे “उपकार हॉस्पिटल” का नाम दूर-दूर तक जाएगा।
आज उनकी यही सोच बिल्कुल सही साबित हो रही है। आज मेरे इस उपकार हॉस्पिटल एंड कैंसर इंस्टिट्यूट में पूरे पूर्वांचल तक के मरीज कैंसर के गंभीर से गंभीर रोगों का इलाज करा सकते हैं।
मेरे हॉस्पिटल में वे सारे संसाधन मौजूद हैं जो बड़े-बड़े महानगरों में होते हैं। हां, महानगरों के हॉस्पिटल में इलाज तो जरूर होता है, लेकिन इलाज काफी महंगा होता है, जैसे – मुंबई, दिल्ली, हावड़ा, चेन्नई, मद्रास, टाटा जमशेदपुर आदि में।
मेरे पिताजी डॉक्टर एम.जे. पटेल की हमेशा यही सोच रही है कि हम अपने इस जीवन काल में हर वर्ग के गरीब, असहाय, मजलूमों की स्वास्थ्य सेवा करें और यही सोच मेरी माता ममता पटेल की भी रही है – क्योंकि सेवा ही धर्म है, और धर्म ही सेवा है। यही बात मेरे माता-पिता के दिमाग में हमेशा रहती है।