गाजीपुर
बकरा ईद की तैयारियाँ तेज, कुर्बानी के लिए तंदुरुस्त जानवरों की खोज शुरू

गाजीपुर। आगामी बकरा ईद (ईद-उल-अजहा) के मद्देनज़र बहरियाबाद क्षेत्र व आसपास के मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में तैयारियाँ जोरों पर हैं। लोग कुर्बानी के लिए अब से ही उपयुक्त जानवरों की तलाश में जुटे हुए हैं।
धार्मिक परंपरा के अनुसार, कुर्बानी के लिए चुना गया जानवर पूर्णतः स्वस्थ, हष्ट-पुष्ट और तंदुरुस्त होना चाहिए। इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, बीमार, कमजोर, अपंग, या अंग-भंग जानवर की कुर्बानी जायज नहीं मानी जाती। जानवर के कान, आंख, पैर और सींग सही सलामत होने चाहिए। टूटा हुआ सींग, कटा कान, लंगड़ापन या अत्यधिक दुबलेपन वाले जानवर की कुर्बानी स्वीकार्य नहीं होती।
कुर्बानी में आमतौर पर बकरा, भेड़, दुम्बा, भैंस या ऊंट शामिल होते हैं। जानवर की खरीद के दौरान धार्मिक नियमों और शारीरिक स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखा जा रहा है।
ईद-उल-अजहा का धार्मिक महत्व
बकरा ईद इस्लाम धर्म में पैगंबर इब्राहिम (अलै.) की अल्लाह के प्रति निःस्वार्थ भक्ति और बलिदान की भावना की याद में मनाई जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, अल्लाह ने इब्राहिम (अलै.) को सपने में अपने प्रिय पुत्र इस्माइल (अलै.) की कुर्बानी देने का आदेश दिया था।
यह एक कठिन परीक्षा थी, लेकिन पैगंबर इब्राहिम ने अल्लाह के आदेश को सर्वोपरि मानते हुए आज्ञा का पालन करने का निर्णय लिया। इस्माइल (अलै.) ने भी पिता के इस फैसले में पूर्ण सहयोग दिया।
जब इब्राहिम (अलै.) अपने पुत्र की कुर्बानी देने जा रहे थे, तब शैतान ने उन्हें बहकाने की तीन बार कोशिश की। लेकिन हर बार उन्होंने शैतान को पत्थर मारकर भगा दिया। यही घटना हज के दौरान ‘जमरत’ की रस्म के रूप में दोहराई जाती है।
कुर्बानी के समय जब इब्राहिम (अलै.) ने अपने पुत्र की गर्दन पर छुरी चलाई, तो अल्लाह ने चमत्कार करते हुए इस्माइल की जगह एक मेमना भेज दिया और उसी की कुर्बानी दी गई। यह दर्शाता है कि अल्लाह को उनके बेटे की जान नहीं बल्कि उनके समर्पण की परीक्षा लेनी थी।
सामाजिक समरसता का प्रतीक
बकरा ईद न सिर्फ धार्मिक बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। कुर्बानी के मांस को तीन भागों में बांटा जाता है एक हिस्सा गरीबों के लिए, दूसरा रिश्तेदारों व दोस्तों के लिए और तीसरा अपने परिवार के लिए रखा जाता है। इससे समाज में समता, भाईचारा और सेवा भावना को बल मिलता है।
यह पर्व यह संदेश देता है कि सच्ची भक्ति का मार्ग त्याग, समर्पण और ईश्वर की इच्छा में आस्था से होकर गुजरता है। बकरा ईद के अवसर पर मुस्लिम समुदाय अल्लाह का शुक्रिया अदा करता है और पैगंबर इब्राहिम (अलै.) के बलिदान को याद करता है, जो आज भी आस्था का अद्वितीय प्रतीक बना हुआ है।