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गाजीपुर

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मैं चाहता हूं जिसे बेवफ़ा लगे है मुझे
नज़र मिलाता नहीं है ख़फा लगे है मुझे

वो कह रहा है कि मैं शहर ए यार ए उल्फत हूं
परखता जब भी हूं वो बेनवा लगे है मुझे

ये अजनबी जो मुझे देखता है मुड़ मुड़ के
लिबासो वज़अ से बे आसरा लगे है मुझे

हवा खिलाफ़ है फिर भी है अपनी मस्ती में
अजब मिजाज का वो ना खुदा लगे है मुझे

मुसीबतों में घिरी रहती है बहुत साजिद
ये जिंदगी भी कोई बद्दुआ लगे है मुझे

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