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मिर्ज़ापुर

“सुदामा-चरित्र में छिपा है भक्ति का सार, श्रीकृष्ण की मित्रता सर्वोपरि” : आचार्य ब्रह्मानंद

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भागवत-सप्ताह की पूर्णाहुति पर भक्ति, ज्ञान और जीवन-मूल्य पर दिया संदेश, विष्णु सहस्रनाम से हुआ हवन

मिर्जापुर। जनपद के तिवराने टोला स्थित डॉ. भवदेव पाण्डेय शोध संस्थान में आयोजित श्रीमद्भागवत गीता सप्ताह के अंतिम दिन व्यासपीठ से आचार्य डॉ. ब्रह्मानंद शुक्ल ने श्रीकृष्ण की लीलाओं और भक्ति-भावना पर विस्तार से प्रवचन किया। उन्होंने सुदामा-चरित्र का मार्मिक वर्णन करते हुए कहा कि सुदामा को अत्यंत गरीब बताना उनकी भक्ति की गरिमा को कम करना है। उन्होंने सुदामा को भगवान का सच्चा भक्त और श्रद्धा से परिपूर्ण मित्र बताया।

“सुदामा ने न भगवान से कुछ माँगा, न किसी से। उनके लौटते ही जो महल बना, वह दिव्य था – कुबेर के महलों से भी भव्य,” डॉ. शुक्ल ने कहा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि ब्राह्मणों को केवल भिक्षा पर आश्रित समझना एक भ्रांति है, क्योंकि ब्राह्मण का असली धन ज्ञान और दान होता है।

डॉ. शुक्ल ने ‘गुरु दीक्षा’ को लेकर विशेष सावधानी बरतने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि सुंदर प्रवचन सुनकर या राह चलते किसी को गुरु बना लेना अनुचित है। “गुरु कीजे जान कर” का मंत्र देते हुए उन्होंने कहा कि योग्य गुरु की पहचान करना अत्यंत आवश्यक है, अन्यथा व्यक्ति को पछताना पड़ सकता है।

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उन्होंने जप, यज्ञ, संध्योपासन और शास्त्रों के अध्ययन को उत्तम जीवन का मूल आधार बताया और कहा कि मनुष्य शरीर पाकर केवल भौतिक सुखों तक सीमित रहना पशुता है। “जानवर भोजन, निद्रा में मनुष्य से आगे हो सकते हैं, पर डरते भी मनुष्य से ही हैं,” उन्होंने व्यंग्य के माध्यम से गहन बात कही।

कार्यक्रम की पूर्णाहुति के अवसर पर पुरोहित योगेश शुक्ल एवं अजय कुमार मिश्र द्वारा विष्णु सहस्रनाम के साथ हवन कराया गया। तत्पश्चात देर रात तक भजन-कीर्तन का आयोजन हुआ, जिसमें श्रद्धालु भक्ति रस में सराबोर रहे।

समापन समारोह में जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी के बड़े भ्राता रमापति मिश्र, ADM (F&R) शिवप्रताप शुक्ल एवं ज्योतिषाचार्य नर्मदा शंकर त्रिपाठी द्वारा डॉ. ब्रह्मानंद शुक्ल को सम्मानपत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया।

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