वाराणसी
सामूहिक हत्याकांड में पुलिस की गिरफ्त से भतीजा दूर, महाराष्ट्र की महिला मित्र की तलाश तेज
भतीजे के दिल में बदले की आग, जो कभी ठंडी नहीं हुई
वाराणसी में शराब कारोबारी के पूरे परिवार की हत्या ने 27 साल पुरानी एक हत्या की कहानी को फिर से जीवित कर दिया। जिस तरह 1997 में राजेंद्र गुप्ता ने अपने छोटे भाई कृष्णा गुप्ता की सोते हुए सिर में गोली मारकर हत्या की थी, ठीक वैसे ही अब राजेंद्र और उनके परिवार को गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया गया। इस बार कातिल कोई और नहीं, बल्कि उनका भतीजा विशाल गुप्ता उर्फ विक्की था। जिसने शूटर्स की मदद से इस हत्याकांड को अंजाम दिया।
इस सनसनीखेज सामूहिक हत्याकांड में पुलिस अभी तक किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है। मामले की जांच के दौरान पुलिस ने परिवार के छोटे बेटे जुगनू को हिरासत में लेकर पूछताछ की, लेकिन वह अपने बड़े भाई विशाल गुप्ता उर्फ विक्की के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं दे सका।
जुगनू के अनुसार, विक्की का स्वभाव शांत था और वह ज्यादा किसी से बातचीत नहीं करता था। यहां तक कि वह अपने भाई जुगनू और बहन डॉली से भी कम ही मेलजोल रखता था। पुलिस को जुगनू ने यह भी बताया कि विक्की ज्यादातर समय अपने में ही खोया रहता था।
जांच में खुलासा हुआ है कि विक्की की एक महिला मित्र भी है जो महाराष्ट्र में रहती है। पुलिस ने इस महिला तक पहुंचने के प्रयास तेज कर दिए हैं क्योंकि उसे उम्मीद है कि इससे हत्याकांड के सिलसिले में कुछ अहम सुराग मिल सकते हैं।
27 साल पहले की हत्याएं, अदालत में बंद हुआ मामला
1997 में राजेंद्र पर भाई-भाभी की हत्या का आरोप लगा था। छह महीने बाद पिता और दो गार्ड्स की हत्या का मामला भी अदालत पहुंचा। पहले मामले में पिता लक्ष्मी नारायण वादी थे, लेकिन उनके कत्ल के बाद मां शारदा देवी ने केस की पैरवी संभाली। ऐन वक्त पर शारदा देवी ने गवाही बदल दी, जिसके कारण राजेंद्र को अदालत से राहत मिल गई और मामले बंद हो गए।
भतीजे के दिल में बदले की आग, जो कभी ठंडी नहीं हुई
राजेंद्र ने सोचा कि हत्याओं का खौफनाक दौर खत्म हो गया है। लेकिन वह यह नहीं जानते थे कि कृष्णा का बेटा विशाल उर्फ विक्की बदले की आग में जल रहा था। 27 साल बाद, विशाल ने राजेंद्र और उनके परिवार का खात्मा कर अपनी प्रतिशोध की कहानी पूरी की। उसने शूटर्स की मदद से सभी की सोते वक्त हत्या कर दी।
कारोबारी परिवार में उठे मतभेद से शुरू हुआ था हत्याओं का सिलसिला
पुराने शराब कारोबारी पन्ना साव ने अपने बेटे लक्ष्मीनारायण गुप्ता को शिवाला पर रिक्शे का गैराज खुलवाया। समय के साथ लक्ष्मीनारायण “लक्ष्मी रिक्शावाले” के नाम से प्रसिद्ध हो गए। उनकी दो शादियों से राजेंद्र और कृष्णा गुप्ता का जन्म हुआ। दोनों भाइयों को पिता ने व्यापार में शामिल किया। परिवार और व्यापार का विस्तार होने के साथ-साथ दोनों भाइयों के बीच व्यवसाय की हिस्सेदारी को लेकर विवाद भी शुरू हो गए।
राजेंद्र अपने पिता के व्यवसाय पर नियंत्रण चाहता था। बार-बार अपने पिता से संपत्ति और कारोबार अपने नाम करने का दबाव बना रहा था। पिता द्वारा बार-बार नजरअंदाज किए जाने के कारण राजेंद्र का गुस्सा बढ़ता गया और उसने परिवार को अपनी राह में रोड़ा मान लिया।
राजेंद्र और कृष्णा के बीच पहला बड़ा विवाद 1 जनवरी 1997 को हुआ, जिसमें मारपीट की नौबत तक आ गई। पिता ने कारोबार का प्रबंधन छोटे बेटे कृष्णा को सौंप दिया था, जो राजेंद्र को सहन नहीं हुआ। कुछ ही महीनों बाद 10 जून 1997 की रात, राजेंद्र ने अपने छोटे भाई और भाभी की हत्या कर दी। राजेंद्र ने देसी पिस्टल से कृष्णा, उसकी पत्नी बबिता, और उनके तीन साल के बेटे जुगनू पर गोली चलाई। कृष्णा और बबिता की मौत हो गई, जबकि जुगनू बच गया।
जेल से छूटने के बाद कर दी पिता की हत्या
छह महीने जेल में रहने के बाद, नवंबर में जमानत पर रिहा हुए राजेंद्र ने पिता को जान से मारने की धमकी दे डाली। 5 दिसंबर 1997 की रात हथियार से लैस राजेंद्र ने अपने पिता और उनके दो सुरक्षाकर्मियों पर गोलियां चला दीं। लक्ष्मी नारायण और दोनों गार्डों की मौके पर ही मौत हो गई। इस वारदात के बाद पुलिस ने कुछ घंटों में राजेंद्र को गिरफ्तार कर लिया। इस घटना के बाद शारदा देवी ने अपने ही बेटे के खिलाफ केस दर्ज कराया। उन्होंने कहा, “हमने अपने ही परिवार के हत्यारे को जन्म दिया। बेटे ने उसका सुहाग छीन लिया।”
शारदा कोर्ट में बयान से मुकरी, राजेंद्र को मिली जमानत
माँ शारदा देवी के बयान बदलने के बाद राजेंद्र को जमानत मिलने में काफी आसानी हुई। कृष्णा और बबिता (बेटा-बहू) की हत्या के साथ पति लक्ष्मीनारायण की हत्या में भी शारदा देवी की भूमिका मानी जा रही थी। अदालत में रिश्तेदारों के समझाने पर शारदा देवी ने बयान से मुकरकर राजेंद्र को राहत दिलाई और कोर्ट ने उसे जमानत दे दी। बाहर आकर राजेंद्र ने कृष्णा के बेटों की देखभाल और पढ़ाई का खर्च उठाने का वादा भी किया। 1999 में जब वादी और गवाह अपने बयान से पलट गए तब अदालत ने राजेंद्र के खिलाफ मामला खत्म कर दिया।
व्यापार की कमान संभालने के बाद रौब में रहने लगा राजेंद्र
जुलाई 1999 में पैरोल पर छूटने के बाद राजेंद्र ने शिवाला में अपना ठिकाना बना लिया। पिता की मौत के बाद शराब के ठेके और प्रॉपर्टी का कारोबार संभालते हुए उसने अपना प्रभाव जमाया। हालांकि, उसकी पत्नी ने जेल के बाद मायके में रहना शुरू कर दिया और राजेंद्र अब अपनी मां के साथ ही रहने लगा था। व्यवसाय में वर्चस्व हासिल करने के बाद राजेंद्र का रवैया बदल गया।
नीतू पांडे से प्रेम और विवाह
1998 में मऊ जिले की नीतू पांडे वाराणसी के बसंत कॉलेज में पढ़ाई करने आई। एक दोस्त के माध्यम से उमाशंकर ने शिवाला स्थित राजेंद्र के मकान में कमरा किराए पर लिया और यहीं राजेंद्र और नीतू की पहली मुलाकात हुई। जल्द ही दोनों में प्रेम संबंध गहराने लगे। परिवार के विरोध के बावजूद 17 जनवरी 2000 को राजेंद्र और नीतू ने प्रेम विवाह कर लिया। परिवार ने नाता तोड़ दिया और नीतू ने भदैनी में आकर राजेंद्र के साथ रहना शुरू कर दिया। नीतू कृष्णा गुप्ता के बच्चों का भी ख्याल रखने लगी और वे उसे अपनी मां की तरह मानने लगे।