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वाराणसी

वाराणसी में अधूरी रह गई शारदा सिन्हा की यह इच्छा

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जीते जी कहा था – उनके चरणों में सुरों से हाजिरी लगानी है

वाराणसी। प्रसिद्ध भोजपुरी गायिका शारदा सिन्हा, जिन्होंने अपनी भावपूर्ण गायिकी से छठ पूजा और अन्य पारंपरिक पर्वों में विशेष स्थान पाया था। अब हमारे बीच नहीं रहीं। छठ के अवसर पर उनके गाए गीत जैसे “केलवा के पात पर” देशभर के घाटों पर गूंजते हैं और उनकी आवाज़ से हर छठ पर्व में एक अलग ही रौनक रहती थी। पर इस साल छठ के “नहाय खाय” के दिन उन्होंने अंतिम सांस ली। सोमवार को उनकी तबियत अचानक बिगड़ गई थी और उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। मंगलवार की रात 9 बजे उनका निधन हो गया। वह दिल्ली एम्स में भर्ती थी।

काशी विश्वनाथ मंदिर में गाने की इच्छा अधूरी

शारदा सिन्हा की यह इच्छा थी कि वे काशी विश्वनाथ मंदिर में जाकर बाबा के चरणों में अपनी आवाज़ के जरिए हाजिरी लगाएं। एक इंटरव्यू में उन्होंने इस बात का ज़िक्र किया था कि राम मंदिर उद्घाटन के समय वे काशी आकर बाबा के आंगन में एक गीत प्रस्तुत करना चाहती थीं।

वाराणसी से था विशेष लगाव, बीएचयू में किया छठ गीत का प्रदर्शन

शारदा सिन्हा का वाराणसी से विशेष लगाव था। उनके बेटे अंशुमान ने वाराणसी के राजघाट स्थित बसंत स्कूल से शिक्षा प्राप्त की थी, जिस दौरान उनका काशी आना-जाना होता रहता था। शारदा सिन्हा कई बार वाराणसी के सांस्कृतिक आयोजनों में भी शामिल हुईं। गंगा महोत्सव में उनकी प्रस्तुति को आज भी लोग याद करते हैं।

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साल 2018 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के पंडित ओंकार नाथ ठाकुर प्रेक्षागृह में शारदा सिन्हा ने छठ के गीत गाए थे। तीन दिवसीय लोककला और संस्कृति संवर्द्धन कार्यक्रम के दौरान उन्होंने दर्शकों के समक्ष अपनी लोकप्रिय छठ गायिकी प्रस्तुत की थी। उनके गायन से दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए थे।

भोजपुरी समाज के प्रति प्रेम और चिंता

शारदा सिन्हा ने बीएचयू में युवाओं को संबोधित करते हुए भोजपुरी संस्कृति और परंपराओं को सहेजने की बात कही थी। उन्होंने फूहड़ सामग्री परोसने वाली कंपनियों पर रोक लगाने की आवश्यकता जताई और युवाओं से आग्रह किया कि वे धैर्य रखें और जल्द प्रसिद्धि के लिए समाज में कोई गलत संदेश न फैलाएं।

शारदा सिन्हा का यूं अचानक जाना, भोजपुरी समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उनके गीतों की मिठास, उनकी सरलता और सादगी ने उन्हें अमर बना दिया है।

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