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यूपी विधानसभा में 38 पदों पर वीवीआईपी के रिश्‍तेदारों की हुई भर्ती

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हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिये

लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा और विधान परिषद में 186 ऊंचे पदों पर भर्ती में बड़ा घोटाला सामने आया है। आरओ/एआरओ जैसे 38 पदों पर नेताओं और परीक्षा आयोजित करने वाली बाहरी एजेंसियों के मालिकों ने अपने रिश्तेदारों को नियुक्त कर दिया। तीन साल पहले यूपी विधानमंडल के सचिवालय में की गई इन भर्तियों पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आपत्ति जताई थी और सीबीआई जांच का आदेश दिया था।

सूत्रों के अनुसार, इस भर्ती प्रक्रिया में कई बड़े नेताओं और अधिकारियों के रिश्तेदारों को प्रमुख पदों पर नियुक्त किया गया।

मुख्य आरोप:

  1. पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित के पीआरओ और उनके भाई को विशेष कार्यकारी अधिकारी (पब्लिकेशन) के पद पर नियुक्त किया गया।
  2. विधानसभा के प्रमुख सचिव प्रदीप दुबे के तीन चचेरे भाइयों के बेटे आरओ/एआरओ बने।
  3. पूर्व मंत्री महेंद्र सिंह के भतीजे और अन्य नेताओं के करीबियों को भी प्रमुख पदों पर नियुक्त किया गया।
  4. परीक्षा आयोजित करने वाली एजेंसियों के मालिकों ने अपने पांच रिश्तेदारों को भी अधिकारी बनाया।

कैसे हुआ घोटाला?

2020 और 2021 में आयोजित इन परीक्षाओं में धांधली के आरोप लगे। TSR डेटा प्रोसेसिंग और राभव नामक दो फर्मों को परीक्षा कराने की जिम्मेदारी दी गई थी। यह वही फर्में हैं, जिनके मालिक पहले भी भर्ती में गड़बड़ी के आरोप में जेल जा चुके हैं।

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हाईकोर्ट की टिप्पणी

18 सितंबर 2023 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में सीबीआई जांच का आदेश देते हुए कहा:
“यह भर्ती प्रक्रिया पूरी तरह से अवैध और घोटाले से कम नहीं। बाहरी एजेंसियों ने नियमों को ताक पर रखकर भर्तियां कीं।”

भ्रष्टाचार की प्रक्रिया

2016 तक यूपी विधानसभा की भर्तियां यूपी लोक सेवा आयोग के जरिए होती थीं। लेकिन 2019 में नियम बदल दिए गए और भर्तियों की जिम्मेदारी बाहरी एजेंसियों को दे दी गई। TSR और राभव नाम की एजेंसियों को ठेका दिया गया, जिन्होंने परिवारवाद और पक्षपात के आधार पर नियुक्तियां कीं।

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BECIL (ब्रॉडकास्टिंग इंजीनियरिंग एंड कंसल्टेंसी सर्विसेज) नामक सरकारी कंपनी ने TSR डेटा प्रोसेसिंग को काम सौंपा था। BECIL के सीनियर मैनेजर अविनाश खन्ना ने कहा कि मामला कोर्ट में विचाराधीन है, इसलिए वे इस पर टिप्पणी नहीं कर सकते। सैकड़ों योग्य अभ्यर्थियों को उनके हक से वंचित कर, इन पदों पर नेताओं और अधिकारियों के रिश्तेदारों को बैठाया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने 13 अक्टूबर 2023 को सीबीआई जांच पर रोक लगाते हुए मामले की अगली सुनवाई 6 जनवरी 2025 को तय की है।

आरोपियों के बयान

हृदयनारायण दीक्षित: “मेरे पीआरओ की नियुक्ति के समय मैं इस पद पर नहीं था। मेरा इससे कोई लेना-देना नहीं।”

जय प्रकाश सिंह: “मेरे बेटे और बेटी की नियुक्ति पूरी तरह योग्यता के आधार पर हुई है।”

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प्रदीप दुबे: “यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, इसलिए मैं कुछ नहीं कहूंगा।”

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