चन्दौली
मुहर्रम की मजलिस में मौलाना का संदेश – करबला की मिसाल इंसानियत के लिए रहनुमा

चंदौली। देश और इंसानियत के लिए बलिदान देना इंसान का फ़र्ज़ है। वही व्यक्ति समाज का सच्चा नायक बनता है, जो अपने आराम, इच्छाओं और जीवन तक को मानवता की भलाई के लिए कुर्बान कर देता है। उक्त बातें मौलाना मोहम्मद मेहदी ने नगर पंचायत स्थित वार्ड नं. 14 गांधी नगर में स्व. बबुआ द्वारा स्थापित सैम हास्पिटल के अजाख़ाना-ए-रज़ा में आयोजित मुहर्रम की दूसरी मजलिस के दौरान कहीं।
उन्होंने इमाम हुसैन की अज़ीम कुर्बानी को याद करते हुए कहा कि यह बलिदान किसी स्वार्थ या लालच के लिए नहीं था, बल्कि यह इस्लाम, सत्य और मानवता की रक्षा के लिए था। मौलाना ने कहा कि चौदह सौ साल पहले जब यज़ीद का अत्याचार बढ़ रहा था, तो इमाम हुसैन ने हिंदुस्तान जैसे शांति प्रिय देश में आने की इच्छा जताई थी। यह इस बात का प्रमाण है कि हमारी सरज़मीन तब भी न्याय, समभाव और मानवता का प्रतीक थी।
उन्होंने कहा कि मुहर्रम की दूसरी तारीख ऐतिहासिक है, क्योंकि इसी दिन इमाम हुसैन अपने परिवार और साथियों के साथ करबला की धरती पर पहुंचे थे। यहीं से संघर्ष, सब्र और सच्चाई की मिसाल का वह अध्याय शुरू हुआ, जो आज तक इंसानियत को राह दिखा रहा है।
सैम हास्पिटल के निदेशक डा. सैयद गजन्फर इमाम ने बताया कि मुहर्रम की पांच तारीख को अजाख़ाना-ए-रज़ा से अलम और ताबूत का जुलूस निकाला जाएगा। जिसकी जियारत के लिए आसपास के जिलों से बड़ी संख्या में अज़ादार पहुंचेंगे। इस दौरान बनारस की अंजुमन-ए-जव्वादिया व सिकंदरपुर की अंजुमन अब्बासिया ने ग़मगीन नौहाख़्वानी और मातम पेश किया। मशहूर शायर मायल चंदौलवी ने सोज़ख़्वानी कर इमाम हुसैन और उनके कारवां को खिराज-ए-अकीदत पेश किया।
मिर्जापुर से आए शायर शहंशाह मिर्जापुरी और लखनऊ के शायर वकार सुल्तानपुरी ने अपने कलाम के ज़रिये करबला के दर्दनाक मंज़र पेश किए, जिन्हें सुनकर मजलिस में गहरा सन्नाटा छा गया। इस मौके पर मुदस्सिर, शकील, सरवर, साजिद, सफदर अली, मुस्तफा, इंसाफ, कौसर अली, रियाज़ अहमद आदि अज़ादार मौजूद रहे।