Connect with us

चन्दौली

“महिलाओं और बालिकाओं के सशक्तिकरण के लिए सरकार कर रही सराहनीय प्रयास” : डॉ. अर्पिता

Published

on

चंदौली। महिलाओं और बालिकाओं को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयास सराहनीय हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में महिलाओं के कल्याण और सशक्तिकरण के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य महिलाओं को उनके अधिकार दिलाना और समाज में उन्हें समान अवसर प्रदान करना है।

इस बीच, चैत्र नवरात्र के अवसर पर संपूर्ण क्षेत्र में आदि शक्ति की आराधना में लोग तल्लीन हैं। नवरात्र के दौरान कुमारी कन्याओं की पूजा का विशेष महत्व होता है, क्योंकि सनातन धर्म में कन्याओं को मां दुर्गा का प्रतीक माना जाता है। हालांकि, समाज में महिलाओं को आज भी उचित सम्मान और अधिकार नहीं मिल पा रहा है। इसलिए यह आवश्यक है कि नवरात्र के इस पावन अवसर पर हम यह संकल्प लें कि परिवार और समाज में महिलाओं और बालिकाओं को उचित सम्मान और उनका हक दिलाएं।

“बेटियों का कोई घर नहीं होता, लेकिन बिना बेटियों के घर भी नहीं होता

नवरात्र के तीसरे दिन महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अर्पिता चौरसिया ने समाज में महिलाओं की स्थिति पर अपनी विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि महिलाएं और बेटियां दो परिवारों को जोड़ने का कार्य करती हैं, लेकिन आज भी कई परिवारों में बेटियों को समान अधिकार नहीं मिल पाता है। विवाह के बाद ससुराल जाने वाली बेटी को पराया मान लिया जाता है। उन्होंने कहा,

Advertisement

“जब बेटी शादी के मंडप से ससुराल जाती है, तब वह पराई नहीं लगती, लेकिन जब वह मायके आकर अपने बैग से छोटा सा रुमाल निकालकर मुंह पोछती है, तब उसे पराई होने का एहसास होता है। जब वह रसोई के दरवाजे पर अपरिचित सी खड़ी होती है, तब पराई लगती है। जब पानी के गिलास के लिए इधर-उधर नजरें दौड़ाती है, तब पराई लगती है। और जब लौटते समय ‘अब कब आओगी?’ के जवाब में कहती है ‘देखो कब आना होता है’, तब वह सच में पराई लगने लगती है।”

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं और बेटियों को उचित सम्मान और अधिकार देना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि एक बेटी सिर्फ एक परिवार की नहीं होती, बल्कि वह दो परिवारों को जोड़ने वाली कड़ी होती है। समाज में बेटियों का सम्मान करना और उनके प्रति भेदभाव खत्म करना बेहद जरूरी है।

मां: पहली शिक्षिका

डॉ. अर्पिता चौरसिया ने यह भी कहा कि मां ही बच्चों की प्रथम शिक्षिका होती है। वह अपने बच्चों को न केवल परिवार बल्कि पूरे समाज की गतिविधियों से अवगत कराती है। इसलिए महिलाओं को शिक्षित और सशक्त बनाना बहुत आवश्यक है, ताकि वे अपने बच्चों को अच्छे संस्कार और शिक्षा दे सकें।

महिलाओं के उत्थान के लिए समाज की भूमिका

Advertisement

उन्होंने अपील की कि समाज और परिवार में महिलाओं और बालिकाओं के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव न किया जाए और उन्हें उनका अधिकार और सम्मान प्रदान किया जाए। उन्होंने कहा कि सरकार के साथ-साथ समाज को भी आगे आकर महिलाओं के उत्थान के लिए कार्य करना चाहिए।

सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं जैसे कि ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’, ‘उज्ज्वला योजना’, ‘मुद्रा योजना’, ‘महिला हेल्पलाइन’, और ‘सेल्फ हेल्प ग्रुप्स’ के माध्यम से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का कार्य किया जा रहा है। लेकिन जब तक समाज में मानसिकता नहीं बदलेगी, तब तक इन योजनाओं का पूरा लाभ नहीं मिल पाएगा।

Copyright © 2024 Jaidesh News. Created By Hoodaa