चन्दौली
पूर्वांचल में मशरूम की खेती बनी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़, युवाओं को मिल रहा नया रोजगार

महिलाओं और युवाओं की पहली पसंद बनी मशरूम खेती, गांवों में बढ़ी आत्मनिर्भरता
डीडीयू नगर। पूर्वांचल में मशरूम की खेती अब एक नई कृषि क्रांति का रूप ले रही है। बदलते समय और बढ़ती मांग के साथ किसान तेजी से इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं। आइए जानते हैं कृषि विशेषज्ञ अभिनव यादव से, मशरूम की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी।
मशरूम एक उच्च प्रोटीन, कम वसा और रेशा युक्त आहार है, जिसकी मांग शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में लगातार बढ़ रही है। यह स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होने के साथ-साथ किसानों के लिए आय का अच्छा स्रोत भी बनता जा रहा है। सीमित जगह, कम लागत और कम समय में उत्पादन की क्षमता ने पूर्वांचल के किसानों को इसकी ओर मोड़ा है। आजमगढ़, मऊ, बलिया, देवरिया, गाजीपुर, जौनपुर और चंदौली जैसे जिलों में यह तेजी से लोकप्रिय हो रही है।
मशरूम की खेती खेतों के बजाय घर के खाली कमरे, पुराने गोदाम, टिन शेड या प्लास्टिक हाउस में आसानी से की जा सकती है। चूंकि यह एक गैर-हरित फसल है, इसे सूर्य के प्रकाश की जरूरत नहीं होती। यह साफ, अंधेरे और नियंत्रित वातावरण में पनपती है। प्रमुखतः तीन किस्में होती हैं — बटन, ऑयस्टर और मिल्की मशरूम। बटन मशरूम सर्दियों में उगती है, ऑयस्टर साल भर और मिल्की मशरूम गर्म व नमी वाले मौसम में अच्छी होती है।
खेती की प्रक्रिया सरल है। भूसे या पुआल को पानी में भिगोकर उसमें चूना व यूरिया मिलाकर कंपोस्ट तैयार किया जाता है। फिर इसमें मशरूम का बीज (स्पॉन) मिलाकर पॉलीथिन बैग में भरते हैं और अंधेरे व नमी वाले स्थान पर टांगते हैं। 20-25 दिन में मशरूम निकलने लगते हैं। एक बैग से लगभग 1 से 1.5 किलो उत्पादन होता है। यदि कोई किसान 100 बैग लगाता है तो उसे 30,000 से 40,000 तक की आमदनी हो सकती है, जबकि लागत 12,000 से 15,000 के बीच होती है।
सरकार भी इस क्षेत्र को प्रोत्साहन दे रही है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM) और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) के अंतर्गत किसानों को 40 से 50 प्रतिशत तक अनुदान मिलता है। कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) समय-समय पर प्रशिक्षण शिविर आयोजित करते हैं, जहां किसानों को तकनीकी जानकारी, विपणन, भंडारण आदि की शिक्षा दी जाती है। महिलाएं और युवा इसे घर पर ही शुरू कर आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।
कई गांवों में किसान समूह बनाकर सामूहिक उत्पादन और विपणन कर रहे हैं। इससे लागत घटती है और लाभ बढ़ता है। यदि प्रशासन, कृषि विभाग और किसानों में समन्वय बना रहे, तो यह व्यवसाय पूरे पूर्वांचल में आर्थिक बदलाव ला सकता है। उत्पादों को ताजे, सूखे, पाउडर या अचार के रूप में बेचकर किसान स्थानीय बाजारों, होटलों और ऑनलाइन माध्यमों से अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं।
मशरूम की खेती अब केवल एक फसल नहीं, बल्कि ग्रामीण विकास और रोजगार का सशक्त साधन बन चुकी है। पूर्वांचल की जलवायु और किसानों की मेहनत इसे भारत में मशरूम उत्पादन का केंद्र बना सकती है।