वाराणसी
दक्षिणमुखी काले हनुमान जी के दर्शन को उमड़े काशीवासी

महादेव की नगरी काशी में रामनगर किले के भीतर दक्षिणमुखी काले हनुमान जी के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का भारी जनसैलाब उमड़ रहा है। परंपराओं के अनुसार, वाराणसी की विश्व प्रसिद्ध रामनगर रामलीला के राज्याभिषेक की झांकी के बाद ही इस मंदिर के पट साल में केवल एक दिन खोले जाते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रामनगर किले की खुदाई के दौरान दक्षिणमुखी हनुमान जी की एक भव्य प्रतिमा प्राप्त हुई थी, जिसे काशीराज परिवार ने दक्षिणी छोर पर एक मंदिर बनाकर स्थापित किया। कहा जाता है कि यह प्रतिमा त्रेता युग की है।
इसलिए पड़ा था हमुनान जी का रंग काला
विद्वानों के अनुसार, जब प्रभु श्रीराम लंका पर विजय पाने के लिए निकले और रामेश्वरम में समुद्र के किनारे पहुंचे, तब उन्होंने समुद्र से रास्ता मांगा। लेकिन समुद्र ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। इस पर कुपित होकर प्रभु श्रीराम ने अपना धनुष निकालकर उस पर बाण चढ़ा ली और समुद्र को सुखा देने के लिए बाण छोड़ने का निश्चय किया। समुद्र इस डर से प्रकट हुआ और प्रभु से माफी मांगी।
हालांकि, प्रभु श्रीराम ने समुद्र को माफ कर दिया, लेकिन धनुष पर चढ़ाए गए बाण को वापस नहीं ले सकते थे। इसलिए उन्होंने बाण को पश्चिम दिशा में छोड़ दिया। प्रभु श्रीराम का बाण इतना शक्तिशाली था कि उसके टकराने से धरती हिल सकती थी। इसी कारण हनुमान जी घुटने के बल बैठ गए थे। जब बाण धरती से टकराया तो उसके तेज से प्रभु का रंग काला पड़ गया।
कहा जाता है कि दुनिया में प्रभु हनुमान की ऐसी अलौकिक मूर्ति कहीं और नहीं है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, रामनगर में राज्याभिषेक के समय खुद प्रभु श्रीराम आते हैं। इसलिए मंदिर का पट भी इसी दिन खुलता है और साल भर बंद रहता है।