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चन्दौली

चतुर्मास की समाप्ति के साथ ही आज शुरू होगा शुभ कार्य

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चंदौली। प्रबोधन एकादशी अर्थात देवउठनी का पर्व शनिवार को जनपद सहित नगर पंचायत में धूमधाम से मनाया गया। प्रबोधिनी एकादशी की प्रार्थना आस्थावान भक्तों ने नित्य क्रिया से निवृत होकर मैन तुलसी व श्री हरि विष्णु के शालिग्राम स्वरूप की पूजा अर्चना कर लोक कल्याण की कामना की। वही व्रत रखकर श्री हरि विष्णु का स्मरण किया। प्रबोधिनी एकादशी के व्रत से भक्तों पर नारायण की कृपा सदैव बनी रहती है।

प्रबोधिनी एकादशी के दिन नगर में गन्ना, माला फूल, फल फूल सहित पूजा सामग्री की दुकानों पर खरीदारों की भीड़ लगी रही। हालांकि गन्ना का रेट आसमान छू रहा था। बताते चलें कि 12 माह में कार्तिक माह सबसे पवित्र माना गया है। इस माह में भगवत भजन व पूजन करने से श्रीहरि विष्णु की कृपा सदैव भक्तों पर बनी रहती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी का पर्व अत्यंत शुभ व फलदायी है। इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं। इससे संपूर्ण ब्रह्माण्ड में शुभता का संचार होता है।

चातुर्मास की समाप्ति के साथ ही विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञ सहित अन्य शुभ कार्य भी पुनः शुरु होती है। एकादशी के दिन तुलसी विवाह, दीपदान व श्रीहरि की पूजा का विशेष महत्व है। देवउठनी एकादशी व्रत से पापों का विनाश, सुख समृद्धि व मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन भक्त भगवान के जागरण का उत्सव मनाते हैं।

देवउठनी एकादशी का यह पर्व केवल भगवान को जगाने की क्रिया नहीं है। बल्कि आत्म जागरण का संदेश भी है। जिस प्रकार श्रीहरि विष्णु निद्रा से उठकर विश्व को धर्मपथ पर बढ़ाते हैं। मनुष्य को भी अपनी सुप्त उत्कृष्टता को जागृत करना चाहिए। कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवउठनी) का महत्व अनेक ग्रंथों में वर्णित है।

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पद्मपुराण, स्कन्दपुराण, विष्णुधर्माेत्तरपुराण आदि पद्मपुराण में लिखा है कि “चातुर्मासे स्थितो विष्णुः योगनिद्रां समास्थितः। कार्तिके शुक्लपक्षे तु जागर्ति मधुसूदन।।’’ अर्थात् भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी (शयनी एकादशी) से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक योगनिद्रा में रहते हैं। यह एकादशी सभी पापों का नाश करने वाली व मोक्ष देने वाली है। पूजा पाठ, दान दान, व्रत आदि द्वारा इस दिन विशेष पुण्य प्राप्ति होती है। चातुर्मास की समाप्ति का प्रतीक भी यही दिन माना गया है। इस दिन भगवान विष्णु चातुर्मास की निद्रा से जागते हैं। सभी देवताओं की “जागृति” का प्रतीक है।

पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है जब देवों व मनुष्यों के बीच धर्म करण घटने लगा और अधर्म का आकर्षण बढ़ा, तब देवगण निराश हो उठे। उस समय महान मुनि नारद भगवान ब्रह्मा से पूछते हैं “हे आचार्य! हमें बताइए कि इस संसार में पापों का नाश कैसे होगा, कौन सा व्रत ऐसा है, जिससे मनुष्य को जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलेगा।

ब्राह्मा जी ने कहा कि हे नारद कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी अर्थात् प्रबोधिनी एकादशी को यदि श्रद्धा पूर्वक व्रत किया जाए, तो हजारों अश्वमेध यज्ञों तथा शत राजसूय यज्ञों के समकक्ष पुण्य फल की प्राप्ति होती है। शारीरिक नहीं, मानसिक, भावनात्मक तथा आत्मिक स्तर की है। इस दिन मनुष्य को धर्म, सत्य, सद्कर्म की ओर अग्रसर होना चाहिए।

शनिवार को एकादशी के दिन व्रत रखने वाले भक्तों ने प्रातः स्नान कर शुद्ध होकर शालिग्राम व माता तुलसी विवाह संपन्न कराया। महिलाएं और युवतियां नगर स्थित श्री राम जानकी शिव मठ मंदिर व श्री महावीर मंदिर सहित अन्य देव स्थलों पर शालिग्राम और तुलसी पूजन संपन्न कराया। वही एकादशी का व्रत रखकर श्री हरि विष्णु की उपासना की। एकादशी प्रबोधिनी के चलते नगर में फल फूल पूजन सामग्री गन्ना की दुकानों पर चल पहल बनी रही। मान्यता है कि प्रबोधिनी एकादशी के दिन गन्ना कटाई का पूजन भी किया जाता है।

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