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वाराणसी

कोटवा गांव में 200 साल बाद बनने वाले रास्ते पर रोक, ग्रामीणों में आक्रोश

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वाराणसी । लोहता क्षेत्र के कोटवा गांव में 200 साल बाद आपसी सहमति से शुरू हुए रास्ते के निर्माण कार्य पर कुछ तथाकथित प्रभावशाली लोगों द्वारा रोक लगाए जाने से ग्रामीणों में गहरा आक्रोश व्याप्त है। यह रास्ता गांववासियों की कई पीढ़ियों की लंबी प्रतीक्षा और कठिनाइयों का हल माना जा रहा था।


गांव के समाजसेवी कुर्बान हाजी, कमालुद्दीन, गामा, राजेश और प्रभु नारायण ने अपनी निजी जमीन दान देकर इस रास्ते के निर्माण की नींव रखी। गांववासियों के आपसी सहमति और प्रशासनिक सहयोग से निर्माण कार्य शुरू हुआ। रास्ते के अभाव में ग्रामीणों को चार पहिया वाहन ले जाने में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। यहां तक कि शादी-विवाह के समय बहू-बेटियों को एक किलोमीटर पैदल चलकर मुख्य सड़क तक पहुंचना पड़ता था।


बीमारी के समय स्थिति और भी भयावह हो जाती थी क्योंकि एंबुलेंस और मेडिकल टीम गांव तक पहुंचने में असमर्थ रहती थी। रास्ते के निर्माण की खबर सुनकर ग्रामीणों में उम्मीद की नई किरण जगी थी।


जब रास्ते का निर्माण कार्य शुरू हुआ तो गांव के लोग काफी खुश थे, लेकिन अब कुछ प्रभावशाली लोग अपने निजी स्वार्थ और राजनीति चमकाने के लिए इसका विरोध कर रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि गांव के प्रधानपति भी इन विरोधियों का साथ दे रहे हैं।
रास्ते का काम रुकने से ग्रामीणों में गहरा रोष है। उनका कहना है कि यह रास्ता सिर्फ एक सड़क नहीं, बल्कि उनकी पीढ़ियों के संघर्ष और अधिकार का प्रतीक है। गांववासियों ने प्रशासन से मांग की है कि जल्द से जल्द इस रोक को हटाकर रास्ते का निर्माण कार्य पूरा किया जाए।

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इस विवाद पर प्रशासन की ओर से अभी कोई स्पष्ट बयान नहीं आया है। ग्रामीणों का कहना है कि अगर जल्द समाधान नहीं हुआ, तो वे आंदोलन करने के लिए बाध्य होंगे।
ग्रामीणों का कहना है कि “हमने अपनी जमीन देकर रास्ता बनाया था ताकि गांव की समस्याएं खत्म हो सकें। अब कुछ लोग राजनीति के लिए इसका विरोध कर रहे हैं। यह गांव के विकास में बाधा डालने वाली मानसिकता है।”


कोटवा गांव के इस मुद्दे ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि विकास कार्यों में स्थानीय राजनीति और स्वार्थ किस तरह बाधा बनते हैं। अब देखना यह है कि प्रशासन इस मामले में क्या कदम उठाता है और ग्रामीणों की समस्याओं का समाधान कैसे होता है।

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