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वाराणसी

काशी में बोलें बाबा रामदेव – “मोरारी बापू की आलोचना विधर्मी करें तो ठीक, सनातनी क्यों कर रहे ?”

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वाराणसी। जनपद के सिगरा स्थित रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में नौ दिवसीय मोरारी बापू की ‘मानस सिंदूर कथा’ 14 जून से प्रारंभ होकर 22 जून को संपन्न हुई। समापन अवसर पर पहुंचे योग गुरु बाबा रामदेव ने बापू के चरणों में बैठकर आशीर्वाद लिया और बापू के विरोध पर नाराजगी जताई। रामदेव ने कहा कि, “अगर किसी विधर्मी मुसलमान, ईसाई या कम्युनिस्ट द्वारा आलोचना होती तो समझ आता, लेकिन जब अपने ही सनातनी बापू की आलोचना करें तो यह तनातनी बन जाती है। यह सनातन संस्कृति है, न कि तनातनी संस्कृति।”

इस कथा का विरोध इसलिए शुरू हुआ क्योंकि मोरारी बापू की पत्नी का निधन 12 जून को हुआ और बापू 14 जून को ही काशी पहुंच गए। विरोधियों ने इसे ‘सूतक’ का उल्लंघन बताया और पहले ही दिन उनका पुतला भी फूंका गया। जवाब में बापू ने व्यासपीठ से माफी मांगी और कहा – “मेरे पास भी शास्त्र है, दिखा सकता हूं।”

कथा के अंतिम दिन मोरारी बापू ने प्रेम की महत्ता पर बल देते हुए कहा – “योग जरूरी है, लेकिन परमात्मा के प्रति प्रेम उससे भी जरूरी है। प्रेम नहीं है तो योग-वियोग, ज्ञान-अज्ञान कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है। सनातन धर्म सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि यह सभी को स्वीकार करता है।”

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बापू ने सिंदूर को भी आध्यात्मिकता से जोड़ा और कहा – “जब कोई बुद्ध पुरुष किसी को अपनाता है, तो वह सिंदूर होता है। मेरे बुद्ध पुरुष ने मेरी मांग भरी है, इसलिए मैं नित्य प्रसन्न हूं।”

रामदेव ने मोरारी बापू को “महापुरुष” बताते हुए कहा – “बापू के दो पुत्र हैं – एक पार्थिक और एक पर्माधिक। हम सभी आत्मिक संतान हैं।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि बापू और उनका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। “बापू राजनेता बना सकते हैं, लेकिन राजनेता बापू को नहीं बना सकते।”

बाबा रामदेव के मुताबिक, यह वक्त सनातन की रक्षा और सद्भाव को बढ़ावा देने का है। उन्होंने कहा कि आलोचना का उत्तर देने का उन्हें समय नहीं, क्योंकि बापू राम की महिमा गाने के लिए जन्मे हैं – “बापू राष्ट्र संस्कृति की धरोहर हैं और उनका सम्मान होना चाहिए।”

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