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उत्पात की नयी पोशाक, गले में भगवा माथे पर टीका

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दरोग़ा की वर्दी फाड़ने की घटना से हर कोई हैरान

वाराणसी। गोदौलिया चौराहे पर गत दिनों जो कुछ हुआ वह भयानक ज़रूर था परन्तु अप्रत्याशित बिलकुल नहीं। इसकी पृष्ठभूमि सन् 2017 से ही तैयार हो रही थी जब प्रदेश में सत्ता बदली। तबसे लेकर अब तक प्रदेश में युवाओं की एक ऐसी फ़ौज तैयार हो गई है जिसे न क़ानून की परवाह है न अनुशासन की। उनके गले में लटका भगवा गमछा ही क़ानून है और सड़क पर उपद्रव और गुंडागर्दी का लाइसेंस। अन्यथा न कोई वजह थी और न ही जुर्रत की किसी पुलिसवाले के ग़िरेबान तक इन भगवा धारी गुंडों का हाथ पहुँच जाता।

गोदौलिया चौराहे पर खड़े दरोग़ा का क़सूर सिर्फ़ इतना था कि उसने बिना नंबर की एक बाइक को रोका और गाड़ी के पेपर मांगे। यह माँग गमछाधारी बाइक सवार को इतनी नागवार गुजरी कि उसने फ़ोन करके अपने दर्ज़नों साथियों को बुला लिया। दरोग़ा का न सिर्फ़ बिल्ला नोचा गया बल्कि उसके साथ जमकर दुर्व्यवहार हुआ। वह भी तब जब शहर में आचार संहिता लगी है और पुलिस को पूरा अधिकार है कि वह किसी भी वाहन की तलाशी ले।

नियमतः इस समय पुलिस और प्रशासन चुनाव आयोग के अधीन है और पुलिस चाहती तो दो मिनट के अंदर उपद्रवियों के होश ठिकाने लगा देती। लेकिन गले में लटके भगवा गमछे ने पुलिस के हाथ बांध दिए थे। एफ़आइआर ज़रूर हुई परंतु सिर्फ़ कोरम पूरा हुआ। उसमे भी एक अभियुक्त का नाम निकल दिया गया। ज़ाहिर सी बात है कि ऐसा ऊपर के आदेश पर हुआ होगा।

ज़्यादा दिन पुरानी बात नहीं है जब नारा लगता था कि जिस गाड़ी में सपा का झंडा उस गाड़ी में बैठा गुंडा। यह सिर्फ़ नारा नहीं था बल्कि हक़ीक़त थी। सपा के शासन काल में किस तरह सपाई गुंडों ने पूरे प्रदेश में गुंडई का तांडव मचाया था उसकी याद सबके ज़ेहन में ताजा है। गुंडागर्दी का यह आलम था कि हाईकोर्ट तक को भी नहीं छोड़ा लाल टोपी वालों ने। वहाँ भी हल्ला बोल दिया था।सत्ता बदली तो लोगों ने राहत की सांस ली थी। लेकिन जनता को क्या पता कि सिर्फ़ रंग बदला है। न तो रंगबाज़ बदले न रंगबाजी।

इसी रंगबाज़ी का नतीजा है कि कभी पुलिस की वर्दी फाड़ी जाती है तो कभी किसी छात्रा की अस्मत से खिलवाड़ किया जाता है। आईआईटी बीएचयू की घटना लोगों को याद है। लोगों का मानना है कि सिर्फ़ सत्ता बदली है व्यवस्था जस की तस है। सत्ताधारियों को ऐसे हुड़दंगी पसंद है। यह उनके स्वागत में बाइक जुलूस से लेकर स्वागत द्वार और सभा में भीड़ जुटाने का भी काम करते हैं। इसलिए दाग़दार होते हुए भी इनके दाग पसंद हैं।

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