धर्म-कर्म
काशी का दशाश्वमेध घाट जहां ब्रह्मा जी ने की थी शिवलिंग की पूजा
इसी स्थान पर हुआ था दस अश्वमेध यज्ञ
इसी स्थान पर है प्राचीन दक्षिणेश्वरी महाकाली का मंदिर
वाराणसी। काशी के 84 सुप्रसिद्ध घाटों में से दशाश्वमेध घाट का अपना एक अलग ही महत्व है। काशी को मोक्षदायनी भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि, इस घाट पर स्नान करने से व्यक्ति के सातों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। काशी खंड के अनुसार, शिव पुराण में यह उल्लेख है कि, ब्रह्मा जी ने काशी में आकर बालू से शिवलिंग का आकार देकर और 10 अश्वों की बलि देकर इसी स्थान पर यज्ञ किया था और शिव जी की पूजा की थी। इसलिए इस घाट का नाम दशाश्वमेध घाट पड़ा। ब्रह्मा के यज्ञ से प्रसन्न होकर भगवान शिव जी साक्षात प्रकट हुए।
इस कारण से कांवरिया सावन में इसी घाट से गंगाजल भरकर विश्वनाथ धाम के लिए प्रस्थान करते हैं और काशी विश्वनाथ का जलाभिषेक करते हैं। यहां से काशी विश्वनाथ धाम काफी समीप है जो एक कॉरिडोर में तब्दील हो चुका है। दशाश्वमेध घाट सबसे प्राचीन एवं पवित्र घाटों में से एक है जहां की गंगा आरती पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। प्रतिदिन सायकांल 6 से 7 बजे के बीच गंगा आरती होती है और शिव तांडव स्त्रोत का पाठ होता है।
इसी स्थान पर प्रसिद्ध काली जी का मंदिर भी है जिन्हें दक्षिणेश्वरी काली कहा जाता है। जब असुरों से माता का युद्ध हुआ था, उसी में से रक्तबीज नमक एक असुर जिसका रक्त पृथ्वी पर गिरते ही एक नया असुर पैदा हो जाता था। उसके चलते माता क्रोधित हो गई और रक्तबीज को ही मार कर उसका रक्त पी गई। वह वहां उत्पन्न असुरों को खा जाती थीं जिससे नए असुर पैदा नहीं हो सके। यह माता का विकराल रूप है जो शक्ति से संपूर्ण है। यहां भक्तों को मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। काशी खंड में इसका विशेष उल्लेख है।