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वाराणसी

माटी की सुवास से महकने लगा दिवाली का बाजार, कुम्हारों में छाया उत्साह

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30 से 50 प्रतिशत बढ़ी मिट्टी के दीयों की मांग

वाराणसी। दिवाली के आगमन के साथ ही वाराणसी के बाजार मिट्टी के दीयों से जगमगा उठे हैं। माटी की खुशबू और चाक की गति ने इस त्योहारी माहौल को और जीवंत बना दिया है। लक्ष्मी-गणेश पूजन की तैयारी के साथ ही श्री और समृद्धि की कामना का यह पर्व अब कुम्हारों के चेहरों पर मुस्कान भी बिखेर रहा है।

इस वर्ष मिट्टी के दीयों की मांग में 30 से 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। परंपरागत दीयों के साथ अब डिजाइनर दीयों की भी भारी मांग है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘लोकल फॉर वोकल’ के आह्वान ने कुम्हारों और स्वयं सहायता समूहों में नया जोश भर दिया है।

भट्ठी लोहता के कुम्हार गोविंद प्रजापति के अनुसार, “पिछले साल 60 हजार रुपये तक की कमाई हुई थी, इस बार सवा लाख तक पहुंचने की उम्मीद है।” वहीं राजू प्रजापति बताते हैं, “पहले हाथ के चाक पर एक घंटे में 400 दीये बनते थे, अब मशीन से 800 तक बना लेते हैं। पिछले साल की तुलना में दोगुनी आमदनी की उम्मीद है।”

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इस बार बाजार में परंपरा को बनाए रखते हुए पर्यावरण अनुकूल डिजाइनर दीये भी आकर्षण का केंद्र बने हैं। मोमबत्ती की तुलना में ये न केवल सस्ते हैं बल्कि पर्यावरण के लिए भी हितकारी हैं।

हरहुआ के चक्का, आयर, शिवरामपुर, कुरौली और पुआरी खुर्द सहित चोलापुर, बड़ागांव और हरहुआ ब्लॉक के कुम्हारों के चेहरों पर रौनक है। ग्रामीण क्षेत्रों में दीयों की मांग में 25 से 30 प्रतिशत वृद्धि देखी जा रही है।

टिसौरा, कपिसा और महमूदपुर के कुम्हारों ने बताया कि, “पिछले वर्ष जहां 32 हजार दीयों का ऑर्डर मिला था, वहीं इस बार यह संख्या 48 हजार तक पहुंच गई है। कीमत भी 50 रुपये से बढ़कर 60 रुपये प्रति सैकड़ा हो गई है।”

बड़ागांव के रमेश प्रजापति ने बताया कि, “अब सरसों तेल वाले दीयों की मांग घट रही है, जबकि कुल्हड़ और डिजाइनर दीयों की बिक्री बढ़ रही है। दिवाली ही नहीं, बल्कि देवदिवाली के लिए भी कुम्हारों के वर्कशॉप में रतजगा शुरू हो गया है। हर हाथ की मेहनत इस बार शहर को रोशन करने में जुटी है।”

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