वाराणसी
बिना बीमा और प्रदूषण सर्टिफिकेट के दौड़ रही एंबुलेंस
ट्रैफिक पुलिस की ढिलाई से फर्जी नंबर वाली एंबुलेंस बेलगाम
वाराणसी। शहर में सरकारी और प्राइवेट दोनों तरह की एंबुलेंस सेवा में गंभीर अनियमितताओं का खुलासा हुआ है। जांच से पता चला है कि कई एंबुलेंस पर फर्जी नंबर प्लेट लगे हैं, फिटनेस प्रमाणपत्र और प्रदूषण सर्टिफिकेट समय से पहले ही समाप्त हो चुके हैं और कुछ वाहनों की पॉलिसी पूरी तरह से एक्सपायर हो चुकी है। इसके बावजूद इन वाहनों का मरीजों को अस्पताल तक पहुंचाने में लगातार उपयोग हो रहा है, जिससे सड़कों पर सुरक्षा व जवाबदेही पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है।
स्वास्थ्य विभाग के आँकड़ों के मुताबिक शहर में 108 सेवा के 28 और 102 सेवा के 38 एंबुलेंस सक्रिय हैं। इनके अलावा चार सरकारी अस्पतालों के अपने वाहन और लंका, ककरमत्ता, खजुरी, कबीरनगर इलाकों से 300 से अधिक प्राइवेट एंबुलेंस लगातार दौड़ रही हैं। निरीक्षण में कई वाहनों की सीटें फटी मिलीं और ऑक्सीजन सिलिंडर पुराने व अनुपयुक्त परिस्थितियों में पाए गए। बीएचयू के नज़दीकी रूट पर चलने वाली कुछ एंबुलेंस में मेडिकल स्टाफ की अनुपस्थिति देखी गई। केवल ड्राइवर ही मरीजों को हॉस्पिटल तक ले जाते और वहीं छोड़ आते हैं।
जिले के एक मामले में जिला महिला अस्पताल में खड़ी एक एंबुलेंस (यूपी 32 जेड 6870) का नंबर आरटीओ रिकॉर्ड में दर्ज ही नहीं था। ट्रैफिक पुलिस के सिपाही ने प्लेट नंबर चेक किया तो पता चला कि उक्त नंबर फर्जी है और वाहन का कोई विवरण आरटीओ डेटाबेस में मौजूद नहीं है। यह वाहन वर्षों से मरीजों की आवाजाही का काम कर रहा था।
इसी तरह एक अन्य एंबुलेंस (यूपी 41 जी 3804) की फिटनेस 3 अक्टूबर 2018 से समाप्त है, पर वह लगातार सेवा दे रही थी। मंडलीय अस्पताल में खड़ी सरकारी एंबुलेंस (यूपी 41 जी 2749) का इंश्योरेंस 11 मार्च 2023 को समाप्त हो गया था और प्रदूषण सर्टिफिकेट 12 अक्तूबर 2022 को एक्सपायर हो गया था। शव वाहिनी की फिटनेस भी 20 मार्च 2018 को समाप्त होने के बावजूद कई वर्ष से बिना फिटनेस के ही पार्क कर चल रही है और उसकी नंबर प्लेट भी क्षतिग्रस्त मिली।
ट्रैफिक पुलिस की निष्क्रियता को भी ऐसे मामलों का एक कारण माना जा रहा है। ट्रैफिक कर्मियों द्वारा इन एंबुलेंसों की नियमित जांच न होना कुछ चालकों और एजेंसियों को नियमों की अनदेखी का लाभ दिला रहा है। बीएचयू और आसपास के क्षेत्रों से चलने वाली कुछ प्राइवेट टैक्सियों को भी एंबुलेंस का रूप दे कर चलाया जा रहा है, जिनमें आपातकालीन मेडिकल व्यवस्था, प्रशिक्षित स्टाफ और आवश्यक उपकरणों की कमी स्पष्ट है। इन वाहन चालकों द्वारा मरीजों को छोटे-डिस्टेंस के लिए मोटा शुल्क वसूलने का भी आरोप है जबकि सरकारी एंबुलेंस निःशुल्क सेवाएँ देने का दावा करती हैं।
परिवहन और स्वास्थ्य विभाग के अलग-अलग दायित्वों का हवाला देते हुए स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा कि निजी एंबुलेंस की जिम्मेदारी परिवहन विभाग की है जबकि सरकारी एंबुलेंस मानकों पर ठीक हालत में हैं। सीएमओ डॉ. संदीप चौधरी ने कहा कि अस्पतालों में खड़ी कितनी गाड़ियां सक्रिय हैं, इसकी जानकारी ली जाएगी और संबंधित विभागों से समन्वय कर मामला उठाया जाएगा। वहीं नागरिक सुरक्षा और मरीजों के जीवन से जुड़े जोखिम के मद्देनजर जल्द से जल्द जांच और सख्त कार्रवाई की मांग उठ रही है।
स्थानीय नागरिकों और मरीजों के परिजनों की चिंता बढ़ी है। कई लोग कहते हैं कि जब जीवन और मौत सीबीर—कब गाड़ी खराब हो जाए या जरूरी सेवाएँ मौजूद न हों तो ऐसी अनियमितताएँ स्वीकार्य नहीं हैं। विशेषज्ञों का मत है कि नियमित आरटीओ व ट्रैफिक जांच, ऑन-रोड फिटनेस व इंश्योरेंस वेरिफिकेशन तथा एंबुलेंस पर मानक पालन की अनिवार्यता से ही इन समस्याओं का स्थायी समाधान निकल सकता है।
वाराणसी में इस खुलासे के बाद सवाल यह उठता है कि मरीजों की सुरक्षा और आपातकालीन सेवाओं की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिये कौन-सा त्वरित कदम उठाया जाएगा और किस समय-सीमा में जिम्मेदार विभाग प्रभावी कार्रवाई करके ऐसे वाहनों को मानक के अनुरूप लाएंगे। जनता की उम्मीद है कि संबंधित विभागों की संयुक्त जांच और सख्त नियम-लागू करने से मरीजों को सुरक्षित, भरोसेमंद व मानक-युक्त एंबुलेंस सेवा दी जा सकेगी।
