गाजीपुर
बहरियाबाद क्षेत्र में मनाया गया गणेश चतुर्थी

गाजीपुर। जिले के बहरियाबाद और आसपास के क्षेत्रों में भगवान गणेश चतुर्थी का जन्म उत्सव समारोह मनाया गया। गणेश चतुर्थी हिंदू धर्म का एक प्रमुख और लोकप्रिय त्योहार है, जो भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि, सौभाग्य और विघ्नहर्ता के रूप में पूजा जाता है। यह त्योहार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।
गणेश चतुर्थी का त्योहार 10 दिनों तक चलता है और इसका समापन अनंत चतुर्दशी के दिन होता है। इस दौरान भक्त भगवान गणेश की मिट्टी या धातु से बनी मूर्तियों को अपने घर में स्थापित करते हैं और उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। माना जाता है कि इन 10 दिनों में भगवान गणेश कैलाश पर्वत से पृथ्वी पर आते हैं और अपने भक्तों के बीच रहते हैं, उनके दुखों को हरते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
मूर्ति स्थापना – भक्त चतुर्थी के दिन शुभ मुहूर्त में भगवान गणेश की मूर्ति अपने घरों, सार्वजनिक पंडालों या मंदिरों में स्थापित करते हैं।
पूजा विधि – मूर्ति स्थापित करने के बाद पूरे 10 दिनों तक सुबह-शाम उनकी पूजा की जाती है। इसमें आरती, मंत्र-जाप और भगवान गणेश को उनकी प्रिय चीजें जैसे मोदक, लड्डू, फल और फूल चढ़ाए जाते हैं।
सजावट – पंडालों और घरों को फूलों, रंगोली और रोशनी से सजाया जाता है।
विभिन्न कार्यक्रम – इन 10 दिनों में भजन, कीर्तन, नाटक और सामाजिक कार्य जैसे विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
विसर्जन – अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान गणेश की मूर्ति का विसर्जन जल (नदी, तालाब, समुद्र) में किया जाता है। इस विसर्जन को ‘गणेश विसर्जन’ कहा जाता है। विसर्जन के समय भक्त नाचते-गाते हुए जयकारे लगाते हैं।
भगवान गणेश के एक महान भक्त मोरया गोसावी का नाम भी इस जयकारे से जुड़ा है। उनका जन्म मोरगांव में हुआ था और उन्होंने वहीं तपस्या कर भगवान गणेश की आराधना की। ऐसा माना जाता है कि भगवान गणेश के आशीर्वाद से ही उनका जन्म हुआ था। मोरया गोसावी ने चिंचवड़ में जीवित समाधि ली थी और तभी से उनका नाम गणपति के जयकारे से जुड़ गया। यह जयकारा भक्त की भक्ति और भगवान के प्रति उनकी आस्था का प्रतीक माना जाता है।
“बप्पा” शब्द – मराठी भाषा में पिता को बप्पा कहा जाता है। महाराष्ट्र में गणेश जी को भी एक पिता के रूप में पूजा जाता है, इसलिए उन्हें “बप्पा” कहा जाने लगा। कुछ स्रोतों के अनुसार मराठी में “मोरया” का अर्थ “आगे आओ” भी होता है, जिसका भावार्थ है – हे गणपति हमारे आगे आओ।
पौराणिक कथा – एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, माता पार्वती ने स्नान करने से पहले चंदन के लेप से एक बालक की रचना की और उसे अपनी गुफा के द्वार पर खड़ा कर दिया। उन्होंने बालक को आदेश दिया कि वह किसी को भी अंदर न आने दे। उसी समय भगवान शिव वहाँ आए और गुफा में प्रवेश करने का प्रयास किया, लेकिन बालक ने उन्हें रोक दिया। इससे क्रोधित होकर शिवजी ने बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया।
यह देखकर माता पार्वती अत्यंत दुखी हुईं और उन्होंने शिवजी से बालक को पुनः जीवित करने का आग्रह किया। तब भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर बालक के धड़ पर लगाकर उसे नया जीवन दिया। इस प्रकार भगवान गणेश का जन्म हुआ और उन्हें सभी देवताओं में प्रथम पूजनीय होने का वरदान मिला।
पूरे भारत में उत्सव – गणेश चतुर्थी विशेष रूप से महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और गुजरात में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। मुंबई में यह त्योहार भव्य स्वरूप में होता है, जहाँ लाखों की संख्या में भक्त भाग लेते हैं।
यह त्योहार न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि एकता और भाईचारे का संदेश भी देता है, क्योंकि इसे सभी समुदायों के लोग मिलकर मनाते हैं।