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गाजीपुर

बहुला गणेश चतुर्थी आज, धन और संतान सुख की होती है प्राप्ति

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दुल्लहपुर (गाजीपुर)। हिन्दू धर्म में भांति-भांति के त्योहार मनाए जाते हैं। हर त्योहार की अपनी महत्ता है, अपनी विशेषताएं हैं। कुछ त्योहार श्रद्धा और विश्वास के साथ व्रत और उपवास करके मनाए जाते हैं। उन्हीं त्योहारों में से एक है भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाने वाला गणेश चतुर्थी का व्रत, जिसे कजली तीज तथा बहुला के नाम से भी जाना जाता है। यह वर्ष में पड़ने वाली चार चतुर्थियों में से एक है। मान्यता है कि भाद्र मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को कजली तीज बहुला गणेश चतुर्थी का व्रत करने वालों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा धन और संतान का सुख प्राप्त होता है।

इस दिन चंद्रोदय से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। कुल्हड़ पर पपड़ी आदि रखकर भोग लगाया जाता है तथा पूजा उपरांत उसी को खाया जाता है। इस दिन गाय के दूध पर उसके बछड़े का अधिकार समझकर गाय के दूध से बनी कोई भी सामग्री नहीं खाई जाती। ऐसी मान्यता है कि इस दिन गाय के दूध से बनी सामग्रियां खाने से खाने वाला पाप का भागी बनता है।

बहुला गणेश चतुर्थी व्रत से संबंधित एक रोचक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु के अंशावतार, सोलह कलाओं से परिपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं में शामिल होने के लिए देवी-देवताओं ने गोप-गोपियों के रूप में गोकुल में अवतार लिया। गौ माता कामधेनु के मन में श्रीकृष्ण की सेवा करने की उत्कट अभिलाषा जागृत हुई और उसने अपने अंश से बहुला नाम की गाय के रूप में अवतार लेकर गोकुल में नंद जी के गौशाला में प्रवेश किया। भगवान श्रीकृष्ण का भी बहुला गाय के प्रति अटूट स्नेह बढ़ गया।

इसी बीच श्रीकृष्ण के मन में अपने प्रति बहुला की सत्यनिष्ठा की परीक्षा लेने का विचार आया। परीक्षा की नियत तिथि और समय उस वक्त तय हुआ जब बहुला अपने दूध-मुँहे बछड़े को छोड़कर वन में चल रही थी। अचानक भगवान श्रीकृष्ण शेर के रूप में प्रकट हो गए। अपने सामने मौत के रूप में शेर को देखकर बहुला डर गई, परंतु साहस जुटाकर शेर से निवेदनपूर्वक कहा— “हे वनराज! आप मुझे थोड़ा समय दीजिए, मेरा बछड़ा भूखा है, मैं अपने बछड़े को दूध पिलाकर आपका आहार बनने आपके पास स्वयं चली आऊंगी।”

सिंह ने कहा— “सामने आए अपने आहार को कैसे जाने दूं? तुम्हारे नहीं लौटने पर तो मैं भूखा ही रह जाऊंगा।” तब बहुला ने सत्य और धर्म की शपथ लेकर अपने आने का विश्वास दिलाया। इससे प्रभावित होकर शेर ने बहुला को जाने दिया।

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बछड़े को दूध पिलाने के बाद अपने सत्य, धर्म और निष्ठा का पालन करते हुए बहुला वनराज के सम्मुख प्रस्तुत हो गई। बहुला की सत्यनिष्ठा देखकर सिंह बने भगवान श्रीकृष्ण स्वयं अपने असली रूप में प्रकट होकर बोले— “बहुला, तुम परीक्षा में पास हो गई। आज से भाद्र मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन गौ माता के रूप में तुम्हारी पूजा होगी। तुम्हारी पूजा करने वाले को धन, ऐश्वर्य और संतान सुख की प्राप्ति होगी।”

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