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गाजीपुर

इमाम हुसैन की याद में बहरियाबाद के चौकों पर रखी गई कर्बला की पवित्र मिट्टी

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बहरियाबाद (गाजीपुर)। मोहर्रम के पवित्र महीने में बहरियाबाद उत्तर मोहल्ला, दक्षिण मोहल्ला और आसपास के मुस्लिम बाहुल्य गांवों में कर्बला को सजाने की परंपरा शुरू हो गई है। मोहर्रम की सातवीं तारीख को देईपुर (बघांव) के ताजियादार फरीद अंसारी और अखाड़ादार अबरार अंसारी, उत्तर मोहल्ला के ताजियादार शमीमुलवरा उस्ताद डॉक्टर मन्नू अहमद, दक्षिण मोहल्ला के हिसामुद्दीन (काजी चौक) और बादशाह, मुंतजिर वकील, अखाड़ा के उस्ताद सलीम अंसारी, माहे आलम उर्फ बादशाह, जाबिर कुरैशी, रुकनपुर दरगाह के अतहर जमाल और उस्ताद जियाउद्दीन, मलिकनगांव के महफूज आलम और उस्ताद रियाजुद्दीन समेत कई ताजियादारों ने कर्बला से मिट्टी लाकर अपने-अपने चौक पर अकीदत के साथ रखा।

कर्बला की मिट्टी को बेहद पवित्र माना जाता है क्योंकि यही वह स्थान है जहां इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके परिवार ने इस्लाम की रक्षा में शहादत दी थी। यह मिट्टी उन शहीदों के प्रति गहरा सम्मान प्रकट करने का माध्यम है जिन्होंने जुल्म के खिलाफ आवाज बुलंद की थी। माना जाता है कि इस पवित्र मिट्टी को घर और मोहल्ले में रखने से बरकत आती है और यह परंपरा शिया व सुन्नी दोनों समुदायों में व्यापक रूप से प्रचलित है। मोहर्रम के दौरान लोग कर्बला की मिट्टी को इमाम चौक पर लाकर इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं।

अकीदतमंद जुलूस की शक्ल में कर्बला से मिट्टी लेकर आते हैं और मोहल्लों तथा वार्डों में बने इमाम चौक पर रखते हैं। इसके बाद फातेहा पढ़ी जाती है, लोग अपने घरों से शरबत और शिरनी लेकर आते हैं, अगरबत्ती, मोमबत्ती और दीप जलाकर इमाम चौक को रौशन किया जाता है। यह परंपरा इमाम हुसैन और उनके साथियों के बलिदान को याद करने और उनके प्रति शोक व्यक्त करने का एक अहम जरिया है। मिट्टी को पवित्रता और रोगमुक्ति का प्रतीक भी माना जाता है। मुहर्रम के इस आयोजन में विभिन्न समुदायों के लोग शामिल होकर एकजुटता और इमाम हुसैन के त्याग के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं।

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