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योगी जी के चित्र से नेपाल, चरित्र से भारत बनेगा हिंदू राष्ट्र: भिखारी प्रजापति

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लखनऊ। नेपाल में राजशाही के बाद लोकतंत्र की सरकार जनता के विश्वास पर खरी नहीं उतरी। माओवादियों के षड्यंत्र , चीन की विस्तारवादी नीति तथा हिंदू राष्ट्र के बिगड़ते स्वरूप से नेपाल में विद्रोह की आग भड़क उठी। आम जनता का उत्पीड़न, हिंदुओं की घटती आबादी तथा ईसाइयों एवं कसाइयों की बढ़ती आबादी ने इस आग में घी का काम किया।

100% हिंदू आबादी वाला नेपाल जल्दी ही 81% पर आ गया। धर्म को अफीम मानने वाली इस सरकार ने खुद ही अपने घर में आग लगा ली। राजा को अपदस्थ कर शासन सत्ता संभालते ही पहला काम किया नेपाली राजमुद्रा से गुरु गोरखनाथ का नाम हटा दिया। गोरखनाथ मंदिर में कोई व्यक्ति खड़ाऊं पहनकर नहीं चल सकता। यहां खड़ाऊं की पूजा होती है, और यही खड़ाऊं चरण पादुका नेपाल नरेश के राज मुकुट में सुशोभित होता है।

धर्म प्राण नेपाली जनता गुरु गोरखनाथ व अपने नरेश ज्ञानेंद्र वीर विक्रम शाह देव के साथ हुए व्यवहार से मर्माहत थी। गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ जी महाराज के चित्र के साथ, आम्रो राजा आम्रो देश, हमारा राजा हमारा देश का नारा लगाती हुई नेपाल को फिर से हिंदू अधिराज्य बनाने की मांग करने लगी। इसमें कुछ भी आश्चर्य नहीं है। सत्ता के लिए उथल-पुथल होते रहते हैं।

दुनिया में कहीं लोकतंत्र है तो कहीं राजतंत्र और कहीं लोकतंत्र व राजतंत्र दोनों साथ-साथ हैं। देश- दुनिया में बहस का विषय मात्र इतना ही है कि, नेपाल जैसे संप्रभु देश में सत्ता परिवर्तन के लिए संघर्ष में आम जनता के हाथों में योगी आदित्यनाथ महाराज जी के चित्र क्यों ? है भी यह विचित्र बात। अपने देश में दूसरे देश के किसी प्रदेश के मुख्यमंत्री या राजनेता का चित्र लहरा कर सत्ता परिवर्तन की बात करना ठीक नहीं। आखिर धर्म प्राण नेपाली जनता के मन में यह विश्वास कैसे घर कर गया कि, योगी के संबल से ही नेपाल पुनः हिंदू अधिराज्य बनेगा। जो लोग महाराज जी को मुख्यमंत्री या भारत का राजनेता मानकर नेपाल में चित्र के द्वारा हस्तक्षेप की बात सोच रहे हैं, वे सही नहीं हैं ।

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पशुपतिनाथ मंदिर व गोरखनाथ मंदिर दोनों शैव पीठ हैं । भगवान शंकर के रूप हैं। नेपाल व भारत की साझी संस्कृति है। दोनों हिंदू राष्ट्र रहे हैं। भगवान राम की ससुराल नेपाल के जनकपुर धाम में है। इसलिए नेपाल व भारत के बीच युगों-युगों से रोटी- बेटी का संबंध भी है। अयोध्या में भगवान राम की प्रतिमा बनाने के लिए नेपाल के पवित्र गंडकी नदी से शिला आई थी, जो भारत व नेपाल की सांस्कृतिक विरासत की प्रतीक है ‌। नेपाल राज्य की वंशावली का संबंध भगवान राम के पुत्र लव से है।

गुरु गोरखनाथ ने नेपाल के राजा पृथ्वी नारायण शाह से लेकर राजवंश का लंबे समय तक संरक्षण किया तथा काल विशेष पर उन्हें दर्शन देकर कृतार्थ भी किया है। नेपाल के अंतिम राजा श्री पांच सरकार महाराज वीरेंद्र विक्रम शाह जू देव , गोरक्षपीठाधीश्र्वर राष्ट्रसंत अवेद्यनाथ को अपना आध्यात्मिक गुरु मानते रहे। सदियों पूर्व शुरू हुए मकर संक्रांति के पावन पर्व पर नेपाल नरेश द्वारा बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा निर्वाध रूप से चली आ रही है।

गोरक्षपीठ, गोरखपुर , गोरखा इन तीनों शब्दों का आपसी संबंध अटूट है । योगी जी महाराज जी इसी अटूट संबंध के प्रतीक हैं*। नेपाली जनता इसी नाते महाराज जी का चित्र लगाती है। मुख्यमंत्री या किसी राजनेता के नाते नहीं।

नेपाल नरेश के सान्निध्य में गोरक्षपीठाश्वर अवेद्यनाथ जी, नेपाल के राष्ट्रगुरु योगी नरहरि नाथ जी, मा. अशोक सिंघल जी तथा जगद्गुरु शंकराचार्यों की उपस्थिति में विक्रम संवत 2037, साल चैत्र 29, तदनुसार 12 अप्रैल 1981 रामनवमी के दिन नेपाल के वीरगंज, पिपरा मठ में विश्व हिंदू महासम्मेलन के रूप में अंतर्राष्ट्रीय हिंदू संगठन विश्व हिंदू महासंघ की रचना योजना बनी। महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में महाराज जी ने सन 2006 गोरखपुर, सन 2008 बलरामपुर, सन 2010 हरिद्वार तथा सन 2016 काठमांडू में अंतर्राष्ट्रीय विराट हिंदू सम्मेलनों का आयोजन कराए ।

अधिवेशनों में हर जगह नेपाल को हिंदू अधिराज्य बनाए जाने का प्रस्ताव रखा। गोरक्षपीठ व नेपाल नरेश के आत्मीय संबंधों के चलते तथा महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में महाराज जी प्रायः काठमांडू आते -जाते रहे हैं।

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महाराज जी मात्र 26 वर्ष की आयु में सन 1998 ईस्वी में पहली बार गोरखपुर से सांसद चुने गए। सन 2002 में हिंदू युवा वाहिनी का गठन करके भारत- नेपाल की सीमा पर धर्मांतरण तथा माओवादी गतिविधियों के बढ़ते प्रभाव को रोका। नेपाल की जनता ने उनके स्वागत में कहा , योगी नहीं योगेश्वर है, तो भारत के नौजवानों ने कहा, परमपिता परमेश्वर है। यहीं से जनता महाराज जी को हिंदुत्व पुनर्जागरण अभियान के महानायक के रूप में देखने लगी। परिणाम यह हुआ कि , देश- दुनिया में हिंदू उत्पीड़न की कहीं भी कोई घटना हो तो सबसे पहले सबकी निगाहें महाराज जी की ओर ही जाती हैं। नेपाल में भूकंप के समय महाराज जी ने बड़ी मदद की थी । नेपाली जनता की पीठ में उठा दर्द महाराज जी के सीने में साफ झलकता है । इसी आत्मीयता के चलते नेपाल की जनता महाराज जी को अपना नायक मानती है , कहती है कि , योगी आदित्यनाथ जैसा लोक संन्यासी सौ दो सौ साल में नहीं बल्कि हजार दो हजार साल में कहीं एक अवतरित होता है।

लंबे समय तक विश्व हिंदू महासंघ की जनरल सेक्रेटरी रहीं नेपाल निवासिनी श्रीमती अस्मिता भंडारी वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । श्रीमती भंडारी महाराज जी के चित्र को लेकर विभिन्न हिंदू संगठनों के साथ नेपाल को हिंदू अधिराज्य बनाए जाने के लिए जूझ रही हैं ।

महाराज जी की शासन सत्ता का मूल मंत्र है, हिंदुत्व व विकास, हिंदुत्व जहां राष्ट्रीयता का पर्याय है, वहीं विकास खुशहाली का सोपान। नेपाली जनता महाराज जी के इस सारगर्भित मूल मंत्र को बखूबी जान चुकी है। उसे लगता है कि, योगी जी के चित्र में इतना दम है कि हम उसे लेकर नेपाल को फिर से हिंदू अधिराज्य बना लेंगे। सदियों से गोरक्षपीठ नेपाल के सुख-दुख का साथी व मार्गदर्शक रहा है।

कर्मयोगी संन्यासी महाराज जी को गुलामी का एहसास करने वाले नाम कत्तई पसंद नहीं है । गोरखपुर का सांसद बनते ही उन्होंने गोरखपुर शहर के उर्दू बाजार का नाम बदलकर हिंदी बाजार , मियां बाजार का माया बाजार तथा अलीपुर का आर्य नगर कर दिया। मुख्यमंत्री बनते ही इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज तथा फैजाबाद का नाम अयोध्या कर दिया और अब कहते हैं कि, मौका मिला तो हैदराबाद को भाग्य नगर में बदल दूंगा ।

हिंदू हृदय सम्राट महाराज जी के सनातन गर्व महाकुंभ पर्व जैसे अविश्वसनीय, अकल्पनीय कार्य चरित्र से भारत की राजनीति सनातन की ओर बढ़ रही है। देर सबेर ही सही महाराज जी के चित्र व चरित्र से नेपाल व भारत दोनों हिंदू राष्ट्र बनेंगे । राम हैं तो राष्ट्र है, कृष्ण हैं तो धर्म है, शिव हैं तो रक्षा है और योगी हैं तो विश्वास है।

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