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वाराणसी

शिकार और प्रदूषण से खतरे में डॉल्फिन, बनारस से गाजीपुर तक संरक्षण अभियान तेज

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11 डॉल्फिन मित्र संभालेंगे जिम्मेदारी

वाराणसी। भारत की राष्ट्रीय जलीय जीव गंगेय डॉल्फिन के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। बढ़ते प्रदूषण और शिकारियों के कारण गंगा में इनकी संख्या लगातार घट रही है। वाराणसी के कैथी क्षेत्र में ढकवां गांव के पास 55 डॉल्फिन पाई गई हैं, जिनके संरक्षण के लिए व्यापक प्रयास शुरू किए गए हैं। पर्यावरण मंत्रालय ने जनवरी से जून के प्रजनन काल को देखते हुए 11 “डॉल्फिन मित्रों” की नियुक्ति की है, जो इस अभियान की अगुवाई कर रहे हैं।

भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून ने गंगा के किनारे जागरूकता अभियान तेज कर दिया है। गांवों में चौपाल लगाकर स्थानीय लोगों को डॉल्फिन संरक्षण के लाभ बताए जा रहे हैं। खासतौर पर मछुआरों को जागरूक किया जा रहा है कि अगर डॉल्फिन गलती से उनके जाल में फंस जाए तो उसे मारा न जाए, बल्कि जाल काटकर छोड़ दिया जाए। इसके बदले वन विभाग मछुआरों को नया जाल उपलब्ध कराएगा।

नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित बनाए रखने के लिए डॉल्फिन का संरक्षण बेहद जरूरी है। इस अभियान के तहत घाटों और नदी किनारे स्वच्छता पर जोर दिया जा रहा है। नावों में साइलेंसर लगाने की पहल की जा रही है ताकि शोर कम हो और डॉल्फिन का प्राकृतिक आवास सुरक्षित रह सके। स्कूल और कॉलेज के छात्रों को सारनाथ गंगा दर्पण जैसे केंद्रों पर ले जाकर जलीय जीवन के महत्व से अवगत कराया जा रहा है, जिससे नई पीढ़ी में संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़े।

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गंगेय डॉल्फिन की विशेषता यह है कि उसकी आंखों में लेंस नहीं होता, लेकिन गंदे पानी में भी वह शिकार करने में सक्षम होती है। यह हर 30 से 120 सेकंड में सतह पर आकर सांस लेती है और इसकी आवाज़ “सुसु” जैसी लगती है, जिससे इसका स्थानीय नाम पड़ा। वयस्क डॉल्फिन का वजन 70 से 90 किलोग्राम तक हो सकता है।

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