वाराणसी
“112 नंबर पर शिकायत कर रोकें ध्वनि प्रदूषण, गुप्त रहेगी पहचान” : चेतन उपाध्याय

बीएचयू महिला महाविद्यालय में सत्या फाउंडेशन ने ध्वनि प्रदूषण पर जागरूकता कार्यशाला का किया आयोजन
वाराणसी/मीरजापुर। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के महिला महाविद्यालय और ‘छात्र कल्याण पहल’ के संयुक्त तत्वावधान में ‘ध्वनि प्रदूषण: चुनौतियाँ एवं समाधान’ विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यक्रम का आयोजन महिला महाविद्यालय के सभागार में हुआ, जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में ‘सत्या फाउंडेशन’ के संस्थापक सचिव चेतन उपाध्याय ने छात्रों और शिक्षकों को ध्वनि प्रदूषण के दुष्प्रभाव और समाधान के उपाय बताए।
ध्वनि प्रदूषण के दुष्प्रभाव और उपाय
चेतन उपाध्याय ने बताया कि ध्वनि प्रदूषण के कारण लोग मानसिक और शारीरिक रूप से प्रभावित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि अत्यधिक शोर से श्रवण शक्ति में कमी, रक्तचाप, अवसाद, एकाग्रता में कमी, बेचैनी और अन्य मानसिक बीमारियाँ हो सकती हैं। उन्होंने सरल तकनीकों का जिक्र करते हुए बताया कि स्मार्टफोन में ‘साउंड लेवल मीटर’ ऐप डाउनलोड कर शोर के स्तर को मापा जा सकता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि 65-70 डेसीबल तक का शोर सहनशील है, लेकिन इससे अधिक होने पर यह स्वास्थ्य और कानूनी समस्याओं को जन्म दे सकता है।

चेतन उपाध्याय ने बताया कि रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक ध्वनि स्रोतों को बंद रखने का कानून है। उन्होंने बताया कि इस दौरान शोर के खिलाफ 112 पर कॉल करके शिकायत की जा सकती है और शिकायतकर्ता की पहचान गुप्त रखी जाती है।
धार्मिक स्थलों पर शोर के खिलाफ कानून
कार्यशाला में दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का जिक्र करते हुए बताया गया कि किसी भी धार्मिक स्थल पर लाउडस्पीकर की ऊंचाई जमीन से 8 फीट से अधिक नहीं होनी चाहिए और स्पीकर का मुँह अंदर की ओर होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक किसी भी प्रकार का लाउडस्पीकर बजाना गैरकानूनी है। नियमों का उल्लंघन करने वालों को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत 1,00,000 तक का जुर्माना या 5 साल तक की जेल हो सकती है।
शोर के खिलाफ शोर मचाने की अपील
मुख्य अतिथि प्रो. एस.एन. शंखवार (निदेशक, चिकित्सा विज्ञान संस्थान, बीएचयू) ने कहा कि शोर को रोकने की शुरुआत हर व्यक्ति को अपने घर से करनी होगी। प्राचार्या प्रो. रीता सिंह ने भी ध्वनि प्रदूषण के प्रति जागरूकता की आवश्यकता पर जोर दिया और घोषणा की कि बीएचयू महिला महाविद्यालय में अब से किसी भी सांस्कृतिक कार्यक्रम में डी.जे. का उपयोग नहीं किया जाएगा।
कार्यक्रम का सफल संयोजन प्रो. मिताली देब और प्रो. कल्पना गुप्ता ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सरिता रानी ने दिया। इस अवसर पर ‘सत्या फाउंडेशन’ के जसबीर सिंह बग्गा और अमित पांडेय भी उपस्थित थे।