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वाराणसी

सुभाष भवन में हिन्दू–मुस्लिम संवाद केन्द्र का हुआ उद्घाटन

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वाराणसी। भारत की आजादी के महानायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के 126वें जन्मदिवस के अवसर पर विशाल भारत संस्थान द्वारा 6 दिवसीय सुभाष महोत्सव का आयोजन सुभाष भवन, इन्द्रेश नगर, लमही में किया गया है। सुभाष महोत्सव के प्रथम दिन आओ जड़ों से जुड़ें अभियान के तहत जलसा-ए-उलमाए इस्लाम कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में प्रदेश भर से मुस्लिम धर्म गुरुओं ने भागीदारी की।

महोत्सव के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य इन्द्रेश कुमार ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के मंदिर में मुस्लिम धर्मगुरुओं के साथ फूल चढ़ाकर एवं दीपोज्वलन कर 6 दिवसीय सुभाष महोत्सव की शुरुवात की। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और उनकी आजाद हिन्द फौज की कुर्बानियों की दास्तान सुनने और अपनी जड़ों की तलाश में आये मौलानाओ में वतनपरस्ती का जज्बा था, वतन को एक रखने की नीयत थी और पूर्वजों और परम्पराओं से एक होने की बात बताने की ललक थी।

खचाखच भरे सुभाष भवन में हिन्दोस्तान जिन्दाबाद और भारत माता की जय के नारे गूंजने पर भले कोई यकीन न करे लेकिन मुस्लिम धर्म गुरुओं की जुटान ने हिन्दू मुस्लिम के नाम पर देश को बांटने वालों को कड़ा संदेश दे दिया। सुभाष मन्दिर में नेताजी सुभाष की प्रतिमा को अपलक निहारते हुए जौनपुर के नौशाद भावुक हो गए, बोले हमारे खानदान से लोग आजाद हिन्द फौज में नेताजी के साथ थे। पूरे भारत के लिए लड़े थे, बंटवारे के लिए नहीं। काश नेताजी होते तो न देश बंटता, न हिन्दू मुसलमानों के बीच खाई बढ़ती।

मुख्य अतिथि इन्द्रेश कुमार ने विशाल भारत संस्थान द्वारा स्थापित “हिन्दू–मुस्लिम संवाद केन्द्र (Hindu-Muslim Dialogue Centre)” का पोस्टर के जरिये उद्घाटन किया।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि इन्द्रेश कुमार ने कहा कि हिन्दू–मुस्लिम संवाद केन्द्र के जरिये प्रतिमाह संघर्ष के विषयों को बातचीत के जरिये हल करने का सूत्र खोजा जायेगा। लगातार बातचीत होने से हिन्दू और मुसलमानों के बीच खाई पैदा करने वालों को सफलता नहीं मिलेगी। नफरती बयान देने वालों को नकारने की प्रवृत्ति बढ़ेगी और आपसी भाईचारा बढ़ेगा। काशी से हिन्दू मुस्लिम संवाद के जरिये संघर्ष और नफरत के बजाय हिन्दू मुसलमानों के बीच बातचीत का रास्ता खुलेगा और बहुत सारे मसले का हल निकलेगा। माँ के प्राणायाम से किसी का मजहब खतरे में नहीं आता। दिल को सुकून मिलता है। हम पूर्वजों से एक हैं, वतन से एक हैं तभी तो हमारा डीएनए मिलता है। डी का मतलब ड्रीम से है, कोई भी भारतीय अपने ही मातृभाषा में सपने देखता है। वह दूसरे भाषा में सपने नहीं देख सकता। एन से मतलब नेशन है। सब वतन से एक हैं और ए से मतलब एन्सेस्टर अर्थात पूर्वज। हम सभी पूर्वजों से एक हैं तो फिर हमें अलग करने वाले कौन है ?

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कार्यक्रम के योजनाकार विशाल भारत संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा० राजीव श्रीगुरूजी ने कहा कि ‘सुभाष भवन एकमात्र ऐसा घर है जिसमें बिना किसी भेदभाव के हिन्दू मुस्लिम एक साथ परिवार की तरह रहते आ रहे हैं। आज एकता और भाईचारा की मिसाल बन चुका है सुभाष भवन। भारत और दुनियां के लोगों के लिये शोध का विषय बन चुका है कि जिनको संघर्ष समूह के रूप में प्रस्तुत किया गया वे एक साथ एक ही घर में अपनी आस्था के अनुसार रह रहे हैं। हिन्दू मुसलमानों के बीच हो रहे संघर्ष को रोकने के लिये सुभाष भवन का मॉडल बेहतर उदाहरण है।

विषय प्रवर्तन करते हुए मुस्लिम धर्मगुरू हाफिज जावेद खान ने कहा कि आज पूरे हिन्दुस्तान और दुनियां में दहशतगर्दों और आतंकवाद बड़ी मुसीबत है जिसकी हम मौलाना मिलकर मुखालफत करने के लिये इकठ्ठे हुए हैं और हम मिलकर उन्हें मिल्लत के रास्ते पर आने के लिये मजबूर कर देंगे। हमारे हिन्दुस्तान में बहुत मजहब मानने वाले मिल्लत के साथ रहते हैं। लेकिन कुछ लोगों को हमारी मिल्लत और मुहब्बत की जिन्दगी पसंद नहीं आती और नफरत का बाजार गर्म अपनी रोटियां सेकते हैं। हम उनके मनसूबों को कामयाब नहीं होने देंगे।

मुस्लिम धर्मगुरू मौलाना शफीक अहमद मुजद्दीदी ने कहा कि इस्लाम हमें और आपको इंसानियत सिखाता है। हमने अपने खून से इस देश की हिफाजत की है। हम इंसानियत और अपने मुल्क के दुश्मन नहीं हैं। जब तक जिन्दगी है हम मुल्क के लिये जीयेंगे और मरेंगे और जरूरत पड़ने पर अपनी कुर्बानी भी देंगे।

मौलाना मकसूद अहमद कादरी ने कहा कि जब तक हमलोग हिन्दुस्तान से मोहब्बत करेंगे और भाईचारगी से रहेंगे तब तक किसी की हिम्मत नहीं होगी नजर उठाकर देखने की। मोहब्बत से नफरत को खत्म कर सकते हैं। अब जरूरत है हम सब एक साथ खड़े हों क्योंकि हमारे पूर्वजों ने हिन्दुस्तान को सींचा है। हिन्दुस्तान की एक–एक चीज से मोहब्बत करना है तो नफरत अपने आप खत्म हो जायेगी।

मऊ के मुस्लिम धर्मगुरू मौलाना तहरीर चतुर्वेदी ने कहा कि कश्मीर हिन्दुस्तान की जन्नत है तो भारत पूरी दुनियां की जन्नत है। हम खुशनसीब है कि हमें हिन्दुस्तान की वतनीयत मिली है। माँ की कोख से निकलकर हिन्दुस्तान की गोद में गिरे, इसलिये देश पहले और मजहब बाद में। जब तक हम जिन्दा रहेंगे अपने देश की मोहब्बत का एलान करते रहेंगे।

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जलसे का संचालन मो० अजहरूद्दीन ने किया एवं धन्यवाद हाफिज जावेद खान ने दिया।

जलसे में मुख्य रूप से मौलाना तहरीर चतुर्वेदी, मौलाना मकसूद अहमद कादिरी, मौलाना शफीक अहमद मुजद्दीदी, मौलाना अब्दुल मुत्तलिब, मौलाना गुलाम रब्बानी, मौलाना रियाज अहमद अंसारी, हाजी सुल्तान अहमद, मौलाना कसीमुद्दीन, मौलाना फुरकान, मौलाना नूर आलम किबला, मौलाना लाल मोहम्मद, मौलाना तौफीक, मौलाना निजामुद्दीन, मौलाना कमरूद्दीन, मौलाना इस्माईल कुरैशी, मौलाना फखरूद्दीन, मौलाना जाहिद, डा० गुफरान जावेद, हाफिज जावेद खान, अफसर बाबा, जुनैद अहमद आदि सैकड़ों मौलानाओं एवं धर्मगुरूओं ने भाग लिया।

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