गोरखपुर
सचिवों और दबंगों की मनमानी से किसान परेशान
खजनी के किसान मांग रहे हैं पारदर्शी वितरण और प्रशासन का हस्तक्षेप
गोरखपुर। जिले के दक्षिणांचल के खजनी तहसील क्षेत्र में इस समय किसानों का गुस्सा उबाल पर है। साधन सहकारी समितियों के सचिवों और कुछ दबंग प्रवृत्ति के किसानों की मिलीभगत ने ईमानदार और मेहनतकश किसानों का जीना दूभर कर दिया है। डीएपी खाद वितरण में भारी गड़बड़ी और मनमानी का आलम यह है कि कोई किसान एक बोरी के लिए रोज सचिव के चक्कर काट रहा है, तो किसी को 35 बोरियाँ तक थमा दी गई हैं। यह असमानता, यह अन्याय, किसान समाज की रगों में आग की तरह दौड़ रहा है।
किसान आज भी उम्मीद से सरकार की योजनाओं पर भरोसा करता है। पर जब वही योजनाएँ सचिवों और दबंगों के हाथों की कठपुतली बन जाएँ, तो उस भरोसे की नींव हिल जाती है। खजनी की साधन सहकारी समितियाँ किसानों की मदद के लिए बनी थीं, मगर अब यह दबंग किसानों और भ्रष्ट सचिवों के लिए धन उगाही का माध्यम बन चुकी हैं।
किसान अशोक कुमार बताते हैं, “मैं भी समिति का सदस्य हूँ, फिर भी मुझे डीएपी खाद नहीं दी जा रही। सचिव सिर्फ अपने चहेतों को खाद बाँट रहे हैं। जिन किसानों के पास ज्यादा रकवा नहीं है, उन्हें नजरअंदाज किया जा रहा है। यहाँ न्याय नहीं, केवल दबंगई चल रही है।”
मोबाइल पर झूठे वादे, बाद में स्विच ऑफ
सचिवों की कार्यशैली इतनी गैर-जिम्मेदाराना है कि वे पहले किसानों को मोबाइल पर भरोसा दिलाते हैं—“कल आ जाइए, आपकी खाद तैयार है”और अगले ही दिन उनका मोबाइल ‘स्विच ऑफ’। किसान सुबह से शाम तक दर-दर की ठोकरें खाकर लौट जाता है। यह केवल बदइंतजामी नहीं, बल्कि किसानों के आत्मसम्मान के साथ खेल है।

सदस्यता का हवाला देकर किया जा रहा है भेदभाव
जब कोई किसान सवाल करता है कि उसे खाद क्यों नहीं मिली, तो सचिव सदस्यता का हवाला देते हुए कहते हैं, “आपकी सदस्यता सक्रिय नहीं है।” लेकिन यही सचिव कुछ प्रभावशाली किसानों को बिना जांच के मनचाही मात्रा में खाद बाँट रहे हैं। यह दोहरी नीति किसानों के बीच असंतोष और शक की लहर फैला रही है।
जनता में रोष, सरकार की छवि पर पड़ रहा असर
गाँवों में चर्चा है कि सरकार किसानों के लिए जितनी संवेदनशील है, ज़मीनी स्तर पर अधिकारी और सचिव उतने ही लापरवाह हैं। किसान पूछ रहे हैं “क्या हम सिर्फ चुनावों में वोट देने के लिए किसान कहलाते हैं? जब हमारी ज़रूरत होती है, तब हमें उपेक्षित क्यों किया जाता है?”
डीएपी जैसी खाद किसानों की फसल के लिए प्राणवायु होती है। इसकी अनुपलब्धता न केवल फसल को बल्कि किसान के जीवन को भी संकट में डाल देती है। हर साल सरकार लाखों टन खाद उपलब्ध कराती है, लेकिन जब उसका सही वितरण न हो, तो इसका असर सीधे उत्पादन पर पड़ता है। और यही असर आगे चलकर सरकार की साख पर भी भारी पड़ सकता है।
एक किसान का दर्द — “एक का पेट भरा, बाकी भूखे
अशोक कुमार कहते हैं, “एक किसान को पूरी गाड़ी भर खाद दे दी जा रही है, और हम जैसे छोटे किसानों को एक बोरी के लिए भी तड़पना पड़ रहा है। सरकार की व्यवस्था कहती है कि हर किसान को उसके रकवे के हिसाब से खाद मिलेगी, मगर यहाँ तो ताकत और पहचान ही सब कुछ है।”
यह दर्द सिर्फ अशोक कुमार का नहीं है, यह आवाज़ उन सैकड़ों किसानों की है जो आज भी उम्मीद में हैं कि शायद कोई अधिकारी उनकी सुन ले। लेकिन प्रशासन की चुप्पी ने किसानों को हताश कर दिया प्रशासन से उम्मीद, मगर कार्रवाई अब तक शून्य
किसानों की मांग है कि प्रशासन तुरंत हस्तक्षेप करे। हर किसान की खतौनी सार्वजनिक की जाए ताकि हर कोई देख सके कि किसका कितना हक बनता है। वितरण प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए, और सचिवों की मनमानी पर लगाम लगाई जाए।
अगर प्रशासन ने इस बार भी आंख मूंद ली, तो किसानों का भरोसा टूट जाएगा और यह असंतोष बड़े आंदोलन का रूप ले सकता है। गाँवों में पहले से ही पंचायतें हो रही हैं, किसान एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद करने की तैयारी में हैं।
किसानों की मंशा साफ है। वे सिर्फ इतना चाहते हैं कि उन्हें उनका हक मिले, उनकी मेहनत का सम्मान हो, और सरकार की योजनाएँ उन तक निष्पक्ष रूप से पहुँचे।
सरकार को अब सोचना होगा अगर ज़मीनी स्तर पर सचिव और दबंग इस तरह किसानों का हक़ मारते रहे, तो “डबल इंजन सरकार” की छवि भी किसानों के आक्रोश के नीचे दब जाएगी।
खजनी की यह घटना केवल एक तहसील की समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरे प्रदेश के उस तंत्र का आईना है, जहाँ सिस्टम की कमज़ोरी से किसान फिर से बेबस हो गया है। सरकार अगर वाकई किसानों की हितैषी है, तो उसे इस अन्याय पर तुरंत एक्शन लेना चाहिए। क्योंकि किसान की मंशा अगर आहत हुई, तो इसका असर सीधा सरकार पर पड़ेगा।
