वाराणसी
मॉरीशस की आधी आबादी का डीएनए पूर्वांचल से जुड़ा

वाराणसी। मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम 10-11 सितंबर को वाराणसी आने वाले हैं। अब अगर कहा जाए की मॉरीशस की बसावट में आधी आबादी पूर्वांचल से जुड़ी हुई है तो इसमें कोई अचरज की बात नहीं है। यह रिश्ता केवल भाषा तक सीमित नहीं बल्कि डीएनए स्तर पर भी प्रमाणित है। बीएचयू के जीन वैज्ञानिकों की रिसर्च में बड़ा खुलासा हुआ है।
मॉरीशस के न्यूरो साइंटिस्ट डॉ. प्राणनाथ मूलचंद ने खुद को पूर्वांचली ब्राह्मण बताया और अपनी डीएनए रिपोर्ट भी साझा की। उनके पूर्वज बिहार के बक्सर जिले के गजराजगंज से 1869 में मॉरीशस पहुंचे थे। डॉ. मूलचंद ने कहा कि मॉरीशस के लोग पूरे पूर्वांचल को काशी क्षेत्र के नाम से जानते हैं।
उन्होंने बीएचयू में अपना डीएनए टेस्ट कराया था, जिसमें रिपोर्ट पूर्वांचलियों से मैच हुई। इस रिसर्च से साबित होता है कि मॉरीशस और पूर्वांचल का संबंध न केवल भोजपुरी बोली से है बल्कि आनुवांशिक स्तर पर भी गहरा जुड़ा हुआ है।
अध्ययन में यह भी सामने आया कि मॉरीशस की आबादी में सबसे अधिक उत्तर भारत की अनुसूचित जातियां 50 फीसदी, द्रविड़ समुदाय 41 फीसदी, पाकिस्तानी क्षेत्र से पांच फीसदी और ब्राह्मण समुदाय तीन फीसदी शामिल हैं। वहीं कई जातियां जैसे क्षत्रिय और जनजातियां अब वहां लगभग समाप्त हो चुकी हैं।
बीएचयू के जंतु विज्ञान विभाग में प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे और शोध छात्र शैलेश ने यह अध्ययन किया। उन्होंने बताया कि मॉरीशस की बसाहट में आज भी दो तिहाई जनसंख्या पूर्वांचल से आए लोगों की है, जो भोजपुरी बोली और संस्कृति को जीवित रखे हुए हैं।
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, सबसे पहले 1510 में पुर्तगालियों ने मॉरीशस पर कब्जा किया। 1670 में नीदरलैंड के डच लोगों ने अफ्रीका से मजदूर लाकर बसाना शुरू किया। लेकिन 1810 के आसपास मलेरिया और कालरा फैलने पर अफ्रीकी मजदूरों की मृत्यु बढ़ गई। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने भारतीय श्रमिकों को मॉरीशस भेजना शुरू किया। इन्हीं में बड़ी संख्या पूर्वांचल के प्रवासियों की थी, जिनकी संताने आज वहां की आधी से ज्यादा आबादी का हिस्सा हैं।