Connect with us

वाराणसी

फाइलेरिया उन्मूलन : प्री टास और नाइट ब्लड सर्वे हुआ पूरा

Published

on

जनपद ने फाइलेरिया उन्मूलन की ओर बढ़ाया एक और कदम

सर्वेक्षण में एक फीसदी से भी कम मिली माइक्रो फाइलेरिया दर

अब फरवरी में चलेगा ट्रांसमिशन असेस्मेंट सर्वेक्षण (टास)

रिपोर्ट – प्रदीप कुमार

वाराणसी: जनपद में राष्ट्रीय फाइलेरिया उन्मूलन अभियान के तहत प्री ट्रांसमिशन असेस्मेंट सर्वे (टास) और नाइट ब्लड सर्वे (एनबीएस) का कार्य पूरा हो चुका है। सर्वेक्षण में पता चला कि जनपद में पिछले चार सालों से लक्षित समूह को फाइलेरिया रोधी खिलाने के कारण माइक्रो फाइलेरिया की दर एक प्रतिशत से भी कम देखी गई। यह फाइलेरिया उन्मूलन की दिशा में सार्थक कदम है।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ संदीप चौधरी ने बताया कि फाइलेरिया उन्मूलन की दिशा में नियमित प्रयास किए जा रहे हैं। विभाग की टीम गांव-गांव जाकर सर्वेक्षण और जांच कर रही है। अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी व नोडल अधिकारी डॉ एसएस कन्नौजिया ने बताया कि प्री टास और रात्रि रक्त पट्टिका संग्रह सर्वेक्षण पूरे पिछले माह और इस साल 10 जनवरी तक चला। यह सर्वेक्षण जनपद के सभी आठों ब्लॉक व शहरी पीएचसी पर चलाया गया जिसमें लोगों की जांच की गई । जिला मलेरिया अधिकारी शरद चंद पाण्डेय ने बताया कि इस कार्य को पूरा करने के लिए जनपद में कुल 32 टीमें बनाई गईं थीं जिसमें से सात टीमें ग्रामीण और 25 टीमें शहरी यूनिट में तैनात की गईं थीं।
फाइलेरिया नियंत्रण इकाई प्रभारी व बायोलोजिस्ट डॉ अमित कुमार सिंह ने बताया कि पिछले डेढ़ माह में जनपद की 32 टीमों ने करीब 5.38 लाख आबादी को कवर किया । इस दौरान 28,804 व्यक्तियों का परीक्षण किया गया । इसके साथ ही फाइलेरिया टेस्ट स्ट्रिप (एफ़टीएस) के जरिये व्यक्तियों की जांच की जिसमें 1.51 फीसदी व्यक्ति पॉज़िटिव पाये गए जबकि नाइट ब्लड सर्वे के दौरान किए गए परीक्षण के बाद 0.05 फीसदी नए व्यक्तियों में माइक्रो फाइलेरिया के लक्षण पाये गए जो कि बेहद कम है । इस उपलब्धि से पता चलता है कि पिछले चार सालों में खिलाई गई फाइलेरिया रोधी दवा का सकारात्मक प्रभाव दिख रहा है । उन्होने बताया कि ग्रामीण क्षेत्र के अपेक्षा शहर में माइक्रो फाइलेरिया लक्षण वाले व्यक्ति अधिक मिले हैं । जनपद में नए रोगियों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। पिंडरा ब्लॉक में हुये सर्वे में सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफार) की ओर से बनाए गए फाइलेरिया नेटवर्क के सदस्यों से सहयोग मिला। साथ ही पूर्व में खोजे गए फाइलेरिया हाथी पाँव के मरीजों को एमएमडीपी किट वितरण और प्रशिक्षण में भी सहयोग मिला।
डॉ अमित ने बताया कि शासन की ओर से मिले दिशा-निर्देशानुसार फाइलेरिया उन्मूलन अभियान के तहत ही अगले माह फरवरी में ट्रांसमिशन असेस्मेंट सर्वे (टास) का कार्य शुरू किया जाएगा जिससे साफ तौर पर पता चलेगा कि जनपद में फाइलेरिया बीमारी से कितना सुरक्षित हो चुका है । उन्होने बताया कि फाइलेरिया (हाथीपाँव) लाइलाज है लेकिन एमडीए अभियान के दौरान दवा खाने से इस रोग से बचा जा सकता है। इस दवा का सेवन दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती और अति गंभीर बीमार को छोड़कर सभी को करना है। लगातार पांच वर्षों तक साल में एक बार दवा खाने से इस बीमारी के होने से रोकने या नियंत्रित करने में मदद मिलती है।

Advertisement

Copyright © 2024 Jaidesh News. Created By Hoodaa

You cannot copy content of this page