गाजीपुर
पितृपक्ष में पितरों को भोजन अर्पित करने के लिये पितृ-दूत कौवे को भोग लगाना जरूरी क्यों ?

नंदगंज (गाजीपुर)। हिन्दू धर्म में पितृपक्ष का बहुत बड़ा महत्व होता है। यह पर्व अपने दिवंगत पूर्वजों को याद करने और उन्हें श्रद्धांजलि देने का एक खास अवसर होता है। श्राद्ध पक्ष में पितरों को प्रसन्न करने और आशीर्वाद पाने के लिये तरह-तरह के उपाय किये जाते हैं। इन सबमें पितरों को भोजन अर्पित करने के लिये कौवे को भोग लगाना ज़रूरी होता है।
पितृपक्ष का यह पर्व भाद्रपद की पूर्णिमा से लेकर आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तक 16 दिनों तक चलता है। इस दौरान लोग अपने पितरों की आत्मा की शान्ति के लिए श्राद्ध करते हैं। श्राद्ध कर्म में पितरों का तर्पण, पिण्डदान तथा अन्य धार्मिक अनुष्ठान किये जाते हैं। पितृपक्ष में कौवे को भोजन कराना बहुत महत्वपूर्ण और सबसे ज़रूरी कार्य माना जाता है। लेकिन यदि भोजन के लिये कौवा न मिले तो क्या करना चाहिए।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कौवा यम के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। पितृपक्ष के दौरान कौवे का होना पितरों के आसपास होने का संकेत माना जाता है। कहते हैं कि इसको श्राद्ध के दौरान ग्रास न दें, तो पूर्वज भूखे लौट जाते हैं। इसलिये सभी लोग पितृपक्ष में कौवे को भोजन कराने के लिए ढूंढ़ते हैं। शास्त्रों में वर्णित है कि कौवा एकमात्र ऐसा पक्षी है, जो पितृ-दूत कहलाता है। लेकिन आजकल शहरों में कौवे विलुप्त होते जा रहे हैं। ऐसे में यदि आप श्राद्ध का भोजन कौवे को नहीं करा पा रहे हैं, तो कौवे के नाम का भोग गाय या कुत्ते को खिला सकते हैं। क्योंकि पितरों का भोजन गाय, कुत्ते, कौवे, चींटी और देवताओं को खिलाया जाता है, जिसे पंचवली भोग कहते हैं।
श्राद्ध में पंचवली भोग का बहुत बड़ा महत्व है। पितृपक्ष केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं बल्कि पितरों के प्रति श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक है। ऐसी मान्यता है कि इन पांचों को भोजन कराने से पितरों को भोजन प्राप्त होता है और वे तृप्त हो जाते हैं। लेकिन इन सभी में कौवे का स्थान सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इसी लिये पितृपक्ष में कौवे को पितृ-दूत मानकर श्रद्धा से भोग खिलाते हैं, ताकि हमारे दिवंगत पूर्वज भी तृप्त हो जाएँ।